डेस्क। दलहन अनुसंधान केंद्र मोकामा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने आज वैश्विक कार्यक्रम में ‘दालें: पौष्टिक मिट्टी और स्वास्थ्य’ विषय के तहत, बिहार के ताल क्षेत्र में मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और समुदायों को महत्वपूर्ण पोषण प्रदान करने में दालों की भूमिका पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विश्व दलहन दिवस 2024 के अंतर्गत आयोजित किया गया जो हर साल 10 फरवरी को मनाया जाता है।
इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डॉक्टर जे एस मिश्रा, डॉक्टर अनूप दास, डॉक्टर वी के चौधरी, डॉक्टर संजीव कुमार, डॉक्टर राकेश कुमार के साथ साथ बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के निदेशक अनुसंधान डॉक्टर अनिल कुमार सिंह, उद्यान कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर रणधीर कुमार, कृषि अनुसन्धान संस्थान पटना के क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर एम डी ओझा एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय के दलहन विकास के लिए कार्य कर रहे गणमान्य वैज्ञानिकों ने शिरकत किया और मोकामा ताल में दलहन के विकास पर चर्चा की ।
डॉ. राकेश कुमार, कृषि विज्ञानी, आईसीएआर-आरसीईआर पटना मिट्टी में कार्बन प्रतिशत बनाए रखने पर जोर दिया गया जो दलहनी फसलों द्वारा सफलतापूर्वक किया जाता है। डॉ. वीके चौधरी, आईसीएआर-डीडब्ल्यूआर, जबलपुर ने क्षेत्र में तीन प्रमुख और महत्वपूर्ण खरपतवारों जैसे विसिया सैटिवा, लैथिरस और कस्टुटा पर नियंत्रण पर जोर दिया। डॉ. संजीव कुमार, आईसीएआर-आरसीईआर, पटना ताल क्षेत्र में फसल सघनता बढ़ाने एवं एकीकृत कृषि प्रणाली पर ध्यान दिया।
डॉ. अनुप दास, निदेशक – आईसीएआर-आरसीईआर पटना, शाकाहारी आबादी के लिए प्रोटीन के समृद्ध स्रोत के रूप में दालों की खेती की गुंजाइश तलाशने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि दालें मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य दोनों के लिए पौष्टिक भोजन माना जाता है। मिट्टी के संदर्भ में, दालें आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने, मिट्टी की जैव विविधता को बनाए रखने और मिट्टी की संरचना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने मोकामा क्षेत्र में दलहन के विकास में कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और आई सी ए आर के संस्थानों को साथ मिलकर काम करने पर जोर दिया।
डॉक्टर जे एस मिश्रा ने दलहन में खर पतवार नियंत्रण के लिए सुझाव दिए। उन्होंने बताया कि खरपतवार फसल के साथ-साथ उगकर मृदा में उपलब्ध पौधों के पोषक तत्वों एवं नमी को तेजी से ग्रहण कर लेते हैं। खरीफ मौसम में उच्च तापमान एवं अधिक नमी के कारण रबी मौसम की अपेक्षा अधिक खरपतवार उगते हैं, जिसके कारण फसलों को समुचित मात्रा में पोषक तत्व एवं नमी प्राप्त नहीं हो पाती, साथ ही फसल को आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी ये खरपतवार वंचित रखते है और समय पर यदि इनकी रोकथाम न की गई तो उत्पादन में भारी कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त खरपतवार, फसलों में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं।
निदेशक अनुसंधान डॉक्टर अनिल कुमार सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक और स्थानीय समुदायों मिलकर दलहन के समग्र विकास पर जोर दिया । जलवायु संकट, जैव विविधता हानि, और मिट्टी का क्षरण और गिरावट प्रमुख चुनौतियां हैं, और दालें समाधान का हिस्सा हो सकती हैं। विविध जलवायु में पनपने की उनकी क्षमता अपने नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुणों के साथ मिलकर, उन्हें बहुत मूल्यवान बनाता है । इसी क्रम मे बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर एवम पूर्वी क्षेत्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पटना के साथ साथ भारतीय खरपतवार शोध निदेशालय, जबलपुर के बीच दलहन विकास को लेकर एक साझा करार भी किया गया तथा तकनीकी साहित्यो का भी विमोचन किया गया ।इस अवसर पर ड्रोन के प्रत्यक्षीकरण के साथ साथ किसान बन्धुओ को सम्मानित भी किया गया ।
कार्यक्रम के अंत में डॉक्टर विनोद कुमार, आयोजन सचिव ने सभी किसानों एवं आगंतुकों का कार्यक्रम को बृहत रूप के सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया और मोकामा ताल के विकास के लिए हो रहे कार्यों के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय डॉक्टर डी.आर. सिंह के लिए कृतज्ञता प्रकट की ।