पटना, अशोक “अश्क” बिहार में नीतीश कुमार सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी ने अपनी ताकत बढ़ाते हुए जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की है। इस विस्तार में सात नए मंत्रियों को शामिल किया गया है, जिनमें दरभंगा से संजय सरावगी, बिहारशरीफ से सुनील कुमार, जाले से जिवेश कुमार, साहेबगंज से राजू कुमार सिंह, रीगा से मोतीलाल प्रसाद, सिकटी से विजय कुमार मंडल और अमनौर से कृष्ण कुमार मंटू शामिल हैं।

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इस विस्तार के बाद अब बिहार मंत्रिमंडल में कुल 36 मंत्री हो गए हैं। इसमें बीजेपी के 21, जेडीयू के 13, ‘हम’ पार्टी के 1 और 1 निर्दलीय मंत्री हैं। यह पहली बार है जब 2005 के बाद एनडीए सरकार में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या जेडीयू से डेढ़ गुना हो गई है। इससे साफ़ है कि बिहार की राजनीति में बीजेपी अब बड़े भाई की भूमिका में आ गई है। बीजेपी ने मंत्रिमंडल विस्तार में जातीय संतुलन का खास ध्यान रखा है।
इस बार तीन पिछड़े, दो अति पिछड़े और दो सवर्ण विधायकों को मंत्री बनाया गया है। खास बात यह है कि वैश्य समुदाय से दो मंत्रियों को शामिल किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी इस विस्तार के जरिए 2025 विधानसभा चुनाव से पहले अपनी जातीय और सामाजिक रणनीति को मजबूत कर रही है। बीजेपी इस बार मिथिलांचल पर ज्यादा फ़ोकस कर रही है, चाहे वह मखाना को बढ़ावा देने की नीति हो या मंत्रिमंडल में जगह देकर।
मंत्रिमंडल विस्तार में मिथिलांचल को प्रमुखता दी गई है। दरभंगा और सीतामढ़ी जिलों से संजय सरावगी, जिवेश कुमार और मोतीलाल प्रसाद को मंत्री बनाया गया है। शपथ ग्रहण के दौरान संजय सरावगी और जिवेश कुमार ने मैथिली भाषा में शपथ ली और पाग पहनकर आए, जो मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है। वैश्य समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक रहा है, लेकिन हाल ही में इस समुदाय में नाराजगी देखी गई थी।
लोकसभा चुनाव में शिवहर सीट से रमा देवी का टिकट काटे जाने के बाद वैश्य समाज असंतुष्ट था। बीजेपी ने इस असंतोष को दूर करने के लिए दिलीप जायसवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब मंत्रिमंडल में संजय सरावगी व मोतीलाल प्रसाद को शामिल किया है। जेडीयू को इस मंत्रिमंडल विस्तार में कोई नई जगह नहीं मिली है। जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार इसे पार्टी का अंदरूनी मामला बताते हुए कहते हैं, राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है।
कुछ वरिष्ठ पत्रकार इसे नीतीश कुमार की कमजोर होती पकड़ से जोड़कर देखते हैं। वे कहते हैं, नीतीश कुमार ने बीजेपी के आगे सरेंडर कर दिया है। अब वे हावी नहीं रहे, बल्कि उनके फैसले बीजेपी की सहमति पर निर्भर हो गए हैं। सबसे दिलचस्प नाम कृष्ण कुमार मंटू का है, जो कुर्मी समुदाय से आते हैं। हाल ही में पटना में हुई कुर्मी एकता रैली में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
इस रैली में कुछ नेताओं ने उन्हें भविष्य का मुख्यमंत्री बताया था। उनके मंत्री बनने को बीजेपी की कुर्मी वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी ने इस विस्तार में अपने कोर वोट बैंक को संतुष्ट करने के साथ-साथ जेडीयू के परंपरागत लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) और अति पिछड़े समुदाय को भी साधने की कोशिश की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विस्तार से संकेत मिलता है कि नीतीश कुमार अब बीजेपी को छोड़कर नहीं जाएंगे, सीट बंटवारे में जेडीयू को संतुलन बनाए रखना होगा, लेकिन बीजेपी अब प्रभावी भूमिका में रहेगी और विधानसभा चुनाव समय पर ही होगा। वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, नीतीश कुमार हार्ड बारगेनर हैं, लेकिन इस बार वह खुद बैकफुट पर दिख रहे हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में जेडीयू को कोई स्थान न मिलना यही दर्शाता है। बिहार मंत्रिमंडल का यह विस्तार जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाने की एक कोशिश है। बीजेपी ने इसमें अपनी स्थिति को मजबूत किया है और नीतीश कुमार पर अपनी पकड़ और कसने का संकेत दिया है। आगामी चुनावों में इसका क्या असर होगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन फिलहाल, बीजेपी की रणनीति उन्हें आगे बढ़ते हुए दिखा रही है।