पटना, संदीप सिंह। प्रशांत किशोर समाजशास्त्री या अर्थशास्त्री नहीं है, न ही समाज मनोविज्ञानी या राजनीतिशास्त्री हैं। साथ ही वे पत्रकार या सेफोलॉजिस्ट भी कभी नहीं रहे। वह शिक्षा, ट्रेनिंग, प्रैक्टिस और प्रोफेशन से इनमें से कुछ भी नहीं है। विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए उनकी कंपनी फेसबुक- ट्विटर, सोशल मीडिया हैंडलिंग के साथ इमेज मेकिंग और पॉलिटिकल प्रोपोगंडा का काम करती है।
वे विशुद्ध रूप से एक पॉलिटिकल ब्रोकर या राजनीतिक दलाल है जो पैसे लेकर अलग- अलग राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को विभिन्न प्रकार की सेवायें मुहैया कराते हैं। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है जिसको पूरा करने के लिए वह देशभर के नेताओं से मिल चुके लेकिन निराश होने के बाद अब अपनी पॉलीटिकल पार्टी लांच करने जा रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ राजनीतिक दल और उनके नेतागण प्रशांत किशोर को प्रमोट या प्रोम्प्ट करके उनकी पॉलिटिकल पार्टी लांच कराना चाहते हैं ताकि वह वोट कटवा की भूमिका में वजूद कायम कर उनको मदद पहुंचा सकें। यानि पीके की नई पार्टी एक पॉलिटिकल स्टेपनी या सेफ्टी वॉल्व पॉलिटिकल टूल के तौर पर अपना वजूद बनाने जा रही है।
इससे पहले पुष्पम प्रिया चौधरी भी ऐसे प्रयोग कर चुकी हैं और सभी सीटों पर उनकी जमानत जब्त ही नहीं हुई नोटा से भी कम वोट आए। बिहार की जागरूक जनता सब जानती है और समय आने पर ऐसे राजनीतिक अवसरवादियों को उनकी सही हैसियत बताने के लिए तैयार है।
भाजपा संगठन, विचारधारा, संघर्ष की पार्टी है और हमारे पास पीके से ज्यादा संघर्षशील, काबिल, ज्ञानी कार्यकर्ताओं की फौज सड़कों, गलियों और बूथों पर मौजूद है जिनकी बदौलत भाजपा आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक दल है। हम राजनीतिक दलालों और राजनीति की दुकानों का नोटिस नहीं लेते है।