मजदूर-किसानों की नहीं, देश में काॅरपोरट व कंपनी राज लाना चाहती है भाजपा !

पटना

सहजानंद की क्रांतिकारी विरासत हड़पने की भाजपाई साजिश को बिहार करेगा नाकाम
*किसान विरोधी कृषि कानून लाने वाली भाजपा किसान हितैषी कैसे हो गई! *

State Desk: किसान आंदोलन के महान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की क्रांतिकारी विरासत को भाजपा द्वारा हड़पने और उन्हें एक जाति नेता के बतौर स्थापित कर देने की साजिशों व कोशिशों को बिहार की जनता निश्चित रूप से नाकामयाब करेगी. भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह और खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा कि सहजानंद की विरासत बिहार और पूरे देश में क्रांतिकारी किसान आंदोलन की विरासत है, जिसकी असली उत्तराधिकारी भाकपा-माले है.

माले नेताओं ने आगे कहा कि सहजानंद सरस्वती ने तो बिहार में किसानों के पक्ष में भूमि सुधार की लड़ाइयां लड़़ीं थीं. वे खेतिहर मजदूरों, छोटे-बटाईदारों के हक-अधिकार के पक्ष में उठ खड़े होने वाले नेता थे, लेकिन भाजपा तो काॅरपोरेटों और बड़े भूस्वामियों के पक्ष में खड़ी रहने वाली किसानों-मजदूरों की दुश्मन नंबर एक पार्टी रही है. आज वह किस मुंह व किस अधिकार से सहजानंद की जयंती मना रही है?

उन्होंने सवाल किया कि किसानों के मसले पर लंबी- चौड़ी डींगें हांकने वाली भाजपा क्या यह बतलाएगी कि वह काॅरपोरेटों के पक्ष में और किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करने वाले कृषि कानून लेकर क्यों आई थी? पूरा देश जानता है कि उन कानूनों को वापस कराने के लिए कितनी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. किसानों के उस आंदोलन को बदनाम करने के लिए भाजपाइयों ने क्या – क्या नहीं किया था, लेकिन अंततः उसे किसानों के व्यापक आंदोलन के सामने झुकना पड़ा. अभी बक्सर में किसानों को अपनी जमीन के मुआवजे के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है, क्योंकि केंद्र सरकार ने इस मसले को उलझा कर रख दिया है. भाजपा, दरअसल देश में काॅरपोरेटों व कंपनियों का शासन चाहती है और वह किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर सबकुछ अंबानी-अडानी के हवाले करने का खेल खेल रही है.

भाजपा राज में यूरिया की किल्लत लगातार बनी हुई है. बटाईदार किसानों को केंद्र सरकार किसान का अधिकार ही नहीं देती. उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलती. बिहार में भूमि सुधार की प्रक्रिया यदि आगे नहीं बढ़ पाई तो उसके पीछे भी भाजपा है. कृषि मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलता. मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का भी यही हाल है. किसान मजदूर समागम करने वाली भाजपा यह बताए कि केंद्र सरकार ने मनरेगा की राशि में कटौती क्यों किया? मनरेगा में कटौती करके उसने अपना मजदूर विरोधी चेहरा ही उजागर किया है.