पढ़िए, वीरेंद्र यादव, राजनीतिक विश्लेषक और संपादक
birendrayadavnews.com का खास विश्लेषण!
पिछले दिनों बिहार के संदर्भ में दो बड़ी घटनाएं हुईं। पहली घटना थी, लालू यादव के करीबियों के ठिकानों पर केंद्रीय एजेंसियों के छापे और दूसरी घटना थी, तमिलनाडु में बिहारियों पर हमले की फर्जी खबर! दोनों का सीधा संबंध भाजपा से नहीं था, लेकिन पीछे से भाजपा फूंक मार रही थी! फूंक मारने के फेर में इस बार भाजपा का मुंह झुलस गया है! बिहार भाजपा की पूरी राजनीति लालू यादव परिवार के विरोध पर निर्भर है। पिछले तीन दशक का इतिहास है कि भाजपा ने कभी भी अपने मुद्दे की राजनीति नहीं की है।
उसने बराबर लालू यादव के परिवार की आड़ में राजनीति की है। यही वजह है कि वर्षों सत्ता में रहने के बाद भाजपा रीढ़विहीन बनी रही। भाजपा के कुछ नेताओं ने भी पार्टी को रीढ़विहीन बनाये रखने की रणनीति पर काम किया था। आज भाजपा के पास कोई राज्यव्यापी नेतृत्व नहीं है। पार्टी ने जिन नेताओं को बड़े पदों की जिम्मेवारी सौंप रखी है, उनकी पहचान एक जाति के नेता से अधिक कुछ नहीं है।
वैसी स्थिति में भाजपा फर्जी खबर और केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से राजनीतिक के प्याले में तूफान लाने की कोशिश कर रही थी। फर्जी खबर का गुब्बारा फूट चुका है। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई भी अब मजाक बन गयी है। सीएम नीतीश कुमार ने भी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई को भाजपा की राजनीति का हिस्सा करार दिया है। बिहार का वर्तमान राजनीतिक परिवेश भाजपा के खिलाफ होता जा रहा है। पिछड़ों एवं दलितों में घुसपैठ की कोशिश विफल होती जा रही है। पिछड़ों और दलितों को भाजपा ने जोड़ने की कई कोशिश की, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। भाजपा सवर्णों और बनियों से आगे नहीं बढ़ पा रही है। यही भाजपा की असली बेचैनी है।
नीतीश 50 प्रतिशत कर सकते हैं पिछड़ा-अतिपिछड़ा आरक्षण!
बिहार में जाति आधारित गणना का असर देश भर में पड़ेगा। जुलाई-अगस्त से पहले इसकी रिपोर्ट आ जायेगी। प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के आधार पर 15 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गांधी मैदान से पिछड़ा और अतिपिछड़ा का आरक्षण कोटा 50-55 प्रतिशत कर सकते हैं। इस प्रकार सवर्ण, एससी और एसटी का आरक्षण कोटा मिलाकर , आरक्षण 80 फीसदी तक पहुंच जाएगा। इसके साथ ही तेली, हलवाई जैसी बनिया जातियों को अतिपिछड़ा से निकालने की घोषणा हो सकती है। बिहार सरकार के इस प्रकार के निर्णय का असर देश-व्यापी होगा। नीतीश कुमार जाति आधारित गणना और आरक्षण कोटा में वृद्धि को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर राष्ट्रीय राजनीति कर सकते हैं।
दरअसल भाजपा बिहार में लालू फोबिया से ग्रस्त हो गयी है। इससे आगे बढ़ने की ताकत भाजपा के पास नहीं है और कोई मुद्दा भी नहीं है। फर्जी खबर और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई में फूंक मारने के फेर में भाजपा का मुंह झुलस गया है। वह दलितों और पिछड़ों को यह नहीं समझा पा रही है कि सरकार में रहते हुए उनके लिए क्या किया। पिछले तीन दशक से भाजपा अपने कुनबे के साथ लालू यादव परिवार के खिलाफ अभियान चला रही है, लेकिन अपने पक्ष में माहौल बनाने में विफल रही है। यही भाजपा की सबसे बड़ी त्रासदी है।