जल जंगल जमीन पर हक दिलाना नहीं बल्कि आदिवासियों को हिंदू बनाना है भाजपा का राजनीतिक एजेंडा: शिवानंद

पटना

स्टेट डेस्क/पटना: शहीद बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार के जमुई आगमन पर राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा के पूर्व सदस्य शिवानंद तिवारी ने सवाल उठाया है! तिवारी ने कहा है कि आदिवासी समाज का मन जीतने के लिए आज प्रधानमंत्री जी का जमुई आगमन हुआ था. लेकिन वे आदिवासियों के बीच नहीं, बल्कि ‘वन बंधुओं’ के बीच आये थे.

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आदिवासी समाज को हर हाल में हिंदू बनाना इन लोगों का संकल्प है. जबकि आदिवासी समाज ‘सरना धर्म ‘ को मानता है. वे कहते हैं कि हम मूर्ति की नहीं-प्रकृति की पूजा करते हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा यही लड़ाई रहा है. पहले इस लड़ाई में हेमंत सोरन अकेले थे. अब उनको कल्पना जैसी मज़बूत और समझदार सहयोगी मिल गई हैं. आदिवासी समाज को अंततोगत्वा मौजूदा विकास नीति को ही चुनौती देनी होगी. इसके लिए एक व्यापक मोर्चा बनाना होगा.

तिवारी ने कहा कि पटना से छपने वाले आज के सभी अख़बारों के पहले पन्ने पर भारत सरकार की ओर से एक विज्ञापन छपा है। अन्य राज्यों के अखबारों में भी इसी तरह का विज्ञापन छपा होगा. मौक़ा है बिरसा मुंडा ज़ी के जन्म का डेढ़ सौंवा जयंती वर्ष का. मोदी जी ने इस समारोह का नामकरण किया है ‘जनजातीय ग़ौरव दिवस‘. इस विज्ञापन में बिरसा मुंडा ज़ी का एक पैग़ाम भी छपा है.

‘ जल, जंगल और जमीन का दिया नारा-सदा रहे निज धाम‘. मातृभूमि पर स्वराज हो, बिरसा का पैग़ाम.’
बिरसा मुंडा जी का यह नारा आज भी आदिवासी समाज लगा रहा है. लेकिन अब तक इनको अपने जल, ज़मीन और जंगल पर अधिकार नहीं मिल पाया है.

ऐसा क्यों है ! आदिवासी क्षेत्र को ‘रत्नगर्भा’ कहा जा सकता है. इन रत्नों के बग़ैर आधुनिक उत्पादन नहीं हो सकता है. आधुनिक सभ्यता इसी उत्पादन पर टिकी हुई है. अंग्रेज़ी राज में ही इनके जल, ज़मीन और जंगल पर क़ब्ज़ा शुरू हो गया था. अपना जल, ज़मीन और जंगल बचाने के लिए ही बिरसा मुंडा ने उलगुलान यानी विद्रोह किया था. उनका नारा था ‘रानी का राज जाएगा और हमारा राज आयेगा’.िस प्रकार जेल में उनको ज़हर देकर अंग्रेज़ों ने हत्या कराई थी उसकी अलग कहानी है.

तिवारी ने कहा, आधुनिक समय में आदिवासी समाज के सबसे बड़े नेता जयपाल सिंह मुंडा हुए हैं।वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे।उन्होने आदिवासी समाज के नाम से एक संगठन बनाया था. आज़ादी के बाद जब देश का संविधान बनाया जा रहा था तो जयपाल सिंह जी उस सभा के सदस्य थे. उस सभा में जयपााल सिंह जी का अद्भुत भाषण है. उस भाषण को तो स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि मैं उन लोगों की ओर से बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ जो आज़ादी की लड़ाई के अनजान लड़ाके हैं. भारत के हम मूल निवासी हैं. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद नया भारत आदिवासियत के दर्शन को स्वीकार करे. ‘आप हमको लोकतंत्र की शिक्षा नहीं दे सकते. बल्कि समानता, सह अस्तित्व और लोकतंत्र का सबक़ आपको हमसे ही सीखना होगा. आज़ादी के पहले लड़ाके हम हं.’ यह जयपाल सिंह जी के अथक परिश्रम का नतीजा था कि चार सौ आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला. आरक्षण सहित जंगल और ज़मीन पर जो छोटे मोटे अधिकार मिले वे जयपाल सिंह जी के परि़श्रम का परिणाम है.