स्टेट डेस्क/पटना : जाति जनगणना विकास का डेमोक्रेटिक एजेंडा है। यह किसी खास जाति समूह का एजेंडा नहीं है बल्कि राष्ट्रीय प्रगति का एजेंडा है। सामाजिक चिंतक,लेखक और जाने माने पत्रकार उर्मिलेश ने ये बातें कहीं! वे मंगलवार को पटना कालेज के प्रेमचंद सभागार में ‘जाति जनगणना कितना जरूरी,कितना गैर जरूरी’ व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इसका आयोजन सोशल जस्टिस आर्मी एवं रिसर्च स्कॉलर संगठन की ओर से किया गया था।
उर्मिलेश ने कहा, अक्सर यह बात प्रचारित की जाती रही है कि जाति सर्वेक्षण कराने वाला बिहार पहला राज्य है जबकि यह बात सरासर गलत है। जाति सर्वेक्षण कराने वाला बिहार पहला नहीं तीसरा राज्य है। इसके पहले कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण हुआ हालांकि उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो पायी। देश में पहला जाति सर्वेक्षण 1968 -69 में केरल में किया गया । तब वहां ई एम एस नंबूदरी पाद के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी।
वहां गठित पहली कम्युनिस्ट सरकार को डिसमिस कर दिया गया था, लेकिन उस सरकार ने भूमि सुधार और समान शिक्षा सुधार नामक जो दो बड़े सुधार किये उसने केरल में विकास की एक इबारत लिखी। केरल विकास के तमाम पैमानों पर देश का अव्वल राज्य बन गया। गौरतलब है कि वहां जो दो बड़े सुधार संभव हुए , उसकी अगुवाई करने वाले नेता जमींदार कुलीन पृष्ठभूमि से आते थे।
लेकिन यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि उन्होंने माना कि विकास का एजेंडा तभी पूरा होगा जब हाशिए के समाज को शासन-सत्ता में भागीदारी दी जायेगी। लिहाजा उन्होंने जाति जनगणना के जरिए समाज में व्याप्त गैर बराबरी की पड़ताल की। उसके आधार पर नीतियां बनायी।
उर्मिलेश ने कहा, बिहार ने जाति सर्वेक्षण कराया, लेकिन उससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कार्रवाई नहीं हो रही है।
नीतीश – तेजस्वी के नेतृत्व वाली सरकार ने जाति सर्वेक्षण के कार्यभार को पूरा किया। इस एजेंडे को सभी दलों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन भाजपा ने इसे मजबूरी में बेमन से समर्थन दिया था। यही वजह है कि केंद्र की भाजपानीत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने से कतरा रही है। उसके पितृ संगठन ने हाल में केरल में संपन्न बैठक में किंतु – परंतु के साथ आधे अधूरे मन से इसका समर्थन किया है।
इससे स्पष्ट है कि वह राष्ट्रीय प्रगति के इस एजेंडे को जातावादी नजरिए से देखती है। उसका नजरिया हाशिए के समाज को मुख्यधारा में लाने के खिलाफ है। वह हाशिए के समाज को प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व देना चाहती है। निर्णायक भागीदारी देने से भागती है। यही वजह है कि भाजपा और आर एस एस का समर्थक आधार और उसका प्रचार तंत्र जाता जनगणना जातिवाद फैलाने का एजेंडा बताकर दुष्प्रचार करता है। भ्रम फैलाता है।
उर्मिलेश ने कहा, कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी ने जाति जनगणना के सवाल को नेशनल एजेंडा बनाया है। यह स्वागत योग्य कदम है। लेकिन उनकी पार्टी का कुलीन हिस्सा आज भी मजबूती से इसके पक्ष में खड़ा नहीं दिखता है। लेकिन इससे इस मुद्दे पर राहुल गांधी की प्रतिबद्धता को कम करके आंका नहीं जा सकता है।
उर्मिलेश ने कहा कि पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने का रास्ता बाबा साहब डा भीमराव आंबेडकर ने बनाया था। संविधान का अनुच्छेद 340 जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए आयोग गठित करने का प्रावधान करता है,वह आंबेडकर की सोच का नतीजा है। उन्होंने कहा कि आंबेडकर ने नेहरू सरकार से इस्तीफा सिर्फ हिंदू कोड बिल को लेकर नहीं दिया था। उसमें सामाजिक,शैक्षिक रूप से पिछड़े तबकों की पहचान के लिए आयोग और जमीन का राष्ट्रीयकरण का मुद्दा भी अहम था।
उर्मिलेश ने जाति जनगणना, आरक्षण, ईडब्ल्यूएस सहित अन्य मामलों पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार टीडीपी और जदयू की कृपा पर टिकी है। लेकिन वह आज तक जाति सर्वे को 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं करा पायी है।
इस मौके पर पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रोफेसर शशिकांत पासवान ने कहा कि जाति जनगणना का सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। समाज के कुलक वर्गों ने इसके विरुद्ध जो माहौल तैयार किया है ,उसे समझने की जरूरत है । शशि प्रभा ने कहा कि जाति जनगणना, आरक्षण आदि मुद्दों को जब तक एड्रेस नहीं किया जाएगा बहुजन समाज का कल्याण संभव नहीं है।
कार्यक्रम के शुरुआत में आगत अतिथियों को शॉल देकर रंजन , क्रांति , मनोरंजन, राजा और श्वेत सागर ने सम्मानित किया । कार्यक्रम की शुरुआत में अरुण नारायण ने आगत अतिथियों का स्वागत किया और उर्मिलेश की शख्सियत से जुड़े विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया। संचालन गौतम आनंद और धन्यवाद ज्ञापन शाश्वत ने किया ।पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के अतिथि शिक्षक आशुतोष ने विषय प्रवेश करते हुए जाति जनगणना की जरूरत पर प्रकाश डाला।