राज्यों की कर हिस्सेदारी घटा सकती है केंद्र सरकार, 35,000 करोड़ रुपये तक का संभावित नुकसान

पटना

पटना, अशोक “अश्क” केंद्र सरकार सेंट्रल टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी कम करने की योजना बना रही है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार इस संबंध में वित्त आयोग को सिफारिश भेज सकती है। यदि यह प्रस्ताव लागू हुआ, तो राज्यों को करीब 35,000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान उठाना पड़ सकता है। वित्त आयोग टैक्स वितरण और केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों को तय करता है। अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता वाला 16वां वित्त आयोग 31 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा, जिसे 2026-27 से लागू किया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, सरकार केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41% से घटाकर 40% करने की सिफारिश कर सकती है। माना जा रहा है कि कैबिनेट मार्च के अंत तक इस प्रस्ताव को मंजूरी दे सकती है, जिसके बाद इसे वित्त आयोग को भेजा जाएगा। हालांकि, अभी तक **वित्त मंत्रालय और वित्त आयोग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

टैक्स रेवेन्यू में 1% की कटौती से राज्यों को लगभग 35,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।बीयह अनुमान वर्तमान वर्ष के टैक्स कलेक्शन के आधार पर लगाया गया है। यदि केंद्र सरकार यह बदलाव करती है, तो राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है, खासकर उन राज्यों की जो कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक विकास कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करते हैं।

सूत्रों के अनुसार, 1980 में राज्यों को केंद्रीय करों का केवल 20% हिस्सा मिलता था, जो अब 41% तक बढ़ गया है। लेकिन आर्थिक सुस्ती और केंद्र सरकार के बढ़ते खर्च के चलते इस हिस्सेदारी को कम करने पर विचार किया जा रहा है। 2024-25 में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.8% रहने का अनुमान है।

राज्यों का राजकोषीय घाटा 3.2% रहने की उम्मीद है। वर्तमान में सरकार के कुल खर्च में राज्यों की हिस्सेदारी 60% से अधिक है, क्योंकि वे स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में अधिक खर्च करते हैं। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का ध्यान भौतिक अवसंरचना विकास पर अधिक है। 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से राज्यों की खुद टैक्स वसूलने की क्षमता सीमित हो गई है।

इसके अलावा, केंद्र सरकार ने **कोरोना महामारी के बाद से और सरचार्ज में बढ़ोतरी की है। पहले यह ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू का 9-12% हुआ करता था। अब यह 15% से अधिक हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अतिरिक्त टैक्स राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को चुनावी रेवड़ियां बांटने से रोकने के लिए कड़े कदम उठा सकती है।

इसके लिए केंद्र से मिलने वाले अनुदानों को कुछ शर्तों के साथ जोड़ा जा सकता है। अगर कोई राज्य कैश ट्रांसफर, कर्ज माफी, मुफ्त योजनाएं आदि लागू करता है, तो उसे केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदानों में कटौती का सामना करना पड़ सकता है। यह बदलाव राज्यों को अनावश्यक खर्च और लोकलुभावन योजनाओं से बचाने के लिए किया जा सकता है।

पिछले पांच वर्षों में राज्यों को मिलने वाले राजस्व घाटा अनुदान में भारी गिरावट आई है। 2021-22 1.18 लाख करोड़ था जो 2025-26 में 13,700 करोड़ अनुमानित है। अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो राज्यों को अपने बजट में भारी बदलाव करने पड़ सकते हैं। कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है। राज्यों के बुनियादी ढांचे और सामाजिक विकास योजनाओं को नुकसान हो सकता है।

और राज्यों को अपने राजस्व स्रोत बढ़ाने के लिए नए टैक्स लगाने या खर्च में कटौती करने की जरूरत पड़ सकती है। फिलहाल सरकार इस प्रस्ताव पर कैबिनेट में चर्चा करेगी और फिर इसे वित्त आयोग को भेजेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यों के विरोध के बावजूद, सरकार यह कदम उठा सकती है। अब सबकी नजर वित्त आयोग की रिपोर्ट और केंद्र सरकार के अंतिम निर्णय पर टिकी है।