चंपारण : कलियुग में शारदीय नवरात्र का है विशेष महत्व : आचार्य

पटना

मोतिहारी / राजन द्विवेदी। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार सत्युग में चैत्र नवरात्र, त्रेतायुग में आषाढ़ नवरात्र, द्वापर में माघ नवरात्र एवं कलियुग में आश्विन (शारदीय) नवरात्र की प्रमुखता रहती है। कलौ चण्डी विनायकौ के अनुसार भी कलियुग में चण्डी अर्थात् दुर्गा तथा विनायक अर्थात् गणेश जी की प्रधानता सिद्ध है। उसमें सर्वप्रथम दुर्गा का ही उल्लेख है। मातेश्वरी दुर्गा धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ को प्रदान करने वाली हैं।

अखिल ब्रह्माण्ड नायिका,मातेश्वरी दुर्गा परमेश्वर की उन प्रधान शक्तियों में से एक हैं जिनको यथा समय आवश्यकतानुसार प्रकटित कर परब्रह्म परमत्मा ने विश्व का कल्याण किया है। इनकी आराधना मनुष्य श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् के अनुसार जिस कामना से करता है,थोड़ा प्रयास से ही उसकी सिद्धि होती है।

उसी परमात्मा की आद्या शक्ति दुर्गा की उत्पत्ति एवं महात्म्य का वर्णन महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णिक मन्वंतर कथा के अन्तर्गत देवी महात्म्य में किया गया है। वहीं अंश जगत्प्रसिद्ध दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रत्येक आस्तिक जन के मानस पटल में कल्पवृक्ष के समान व्याप्त है। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।

उन्होंने बताया कि आज गुरुवार को नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश स्थापन के साथ भगवती दुर्गा की आराधना व दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारंभ हो जाएगा। माँ दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं ।पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका यह शैलपुत्री नाम पड़ा था।

इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमलपुष्प सुशोभित है। इनका वाहन वृषभ है। यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नव दुर्गाओं प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और क्तियाँ अनन्त हैं।

शैलपुत्री माता का ध्यान :-
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम् ।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। नवरात्र पूजन के प्रथम दिन देवी को गाय का घी भोग लगाना चाहिए।