पटना, स्टेट डेस्क। बिलकिस बानो बलात्कार और जनसंहार मामले में बलात्कारियों और अपराधियों की रिहाई के आदेश को तत्काल रद्द कर उन्हें पुनः जेल भेजने की मांग पर आज पटना में नागरिकों का प्रतिवाद हुआ. स्टेशन स्थित बुद्ध स्मृति पार्क के पास दर्जनों की संख्या में पटना के नागरिक इकट्ठे हुए और एक स्वर में बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई के आदेश की निंदा की.
नागरिक समाज ने इस घटना को काफी गंभीर बताया और कहा कि देश यह जानना चाहता है कि जिस दिन दिल्ली के लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी नारी सम्मान की बात कर रहे थे, ठीक उसी समय बर्बर बिलकिस सामूहिक बलात्कार व उनके 7 परिजनों की हत्या मामले में दोषियों की रिहाई कैसे हुई? अभी तक प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं? नागरिक समाज जानना चाहता है कि क्या यह रिहाई केंद्र सरकार की सहमति से हुआ? यदि ऐसा है तो यह भाजपा द्वारा बलात्कार की संस्कृति को स्थापित करने की बेहद घटिया कोशिश है.
नागरिक प्रतिवाद को माले विधायक दल के उप नेता सत्यदेव राम, सीपीएम के राज्य सचिव मंडल सदस्य अरुण मिश्रा, पीयूसीएल के महासचिव सरफराज, जसम की समता राय, ऐपवा की अनीता सिन्हा, एडवा की रामपरी देवी, पालीगंज विधायक संदीप सौरव, आइसा के आदित्य रंजन, शायर खुर्शीद अकबर व इंसाफ मंच की आसमा खान ने सम्बोधित किया.
मौके पर संस्कृति कर्मी विनोद जी, शिक्षाविद ग़ालिब व अभय पांडे, संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन, भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता राजाराम, उमेश सिंह, शंभूनाथ मेहता, संजय यादव, सामाजिक कार्यकर्ता अशर्फी दास सहित कई लोग उपस्थित थे. नागरिक प्रतिवाद सभा का संचालन एआईपीएफ के कमलेश शर्मा ने किया
वक्ताओं ने कहा कि गुजरात के चर्चित बिलकिस बानो कांड के बलात्कारी व जनसंहारी गोधरा उप जेल से रिहाई ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है. भाजपाइयों ने बाहर निकले बलात्कारियों-अपराधियों के स्वागत में जगह-जगह आयोजन कर उनकी आरती उतारा. तिलक लगाकर उन सबका अभिनंदन किया गया. यह भाजपा व संघ गिरोह की महिलाओं व मुस्लिमों के प्रति चरम घृणा की खुली अभिव्यक्ति है.
आज यह साफ हो गया कि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की गलत व्याख्या करते हुए दोषियों की रिहाई का आदेश दिया है, जबकि बिलकिस बानो का मामला इतना बर्बर था और गुजरात में जो माहौल बना दिया गया था, उसमें गुजरात में सुनवाई करनी मुश्किल थी. फिर कैसे गुजरात सरकार बलात्कारियों की रिहाई कर रही है?
बिलकिस बानो मामला एक ऐसा मामला था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच चली थी. गुजरात में उन्हें जान से मारने की धमकी के कारण उच्चतम न्यायालय ने उनका मामला महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया था. बिलकिस बानो गैंगरेप व उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या के इस जघन्य मामले में 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. जिसे बाॅम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा.
इस साल दोषियों में से एक ने 1992 की नीति को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में रिहाई की गुहार लगाई, जबकि 1992 की छूट नीति को 2012 में ही उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया है और तदनुसार गुजरात सरकार ने भी 8 मई 2013 को उसे रद्द कर दिया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश के आलोक में गुजरात सरकार द्वारा अपराधियों की रिहाई कहीं से भी वैध नहीं कहा जा सकता है. चंूकि यह मामला गुजरात की बजाए महाराष्ट्र में चला था, इसलिए इस मामले में महाराष्ट्र की सरकार का विचार लेना आवश्यक था.
यह रिहाई जघन्य किस्म का अपराध है, जो आजादी के 75 वें वर्ष में मोदी और भाजपा के तथाकथित नए भारत में खुलेआम किया जा रहा है. भाजपा द्वारा सत्ता के अहंकारी दुरूपयोग और न्याय की उम्मीदों की हत्या के खिलाफ आज पूरे देश को उठ खड़ा होना होगा. अतः बिलकिस बानो के बलात्कारियों व जनसंहारियों की रिहाई के आदेश को अविलंब रद्द करने की मांग करता है.