ऐतिहासिक होने जा रही 15 फरवरी की रैली, भाकपा-माले की सभी रैलियों का टूटेगा रिकार्ड : दीपंकर भट्टाचार्य

पटना

State Desk : भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भाकपा-माले का 11 वां महाधिवेशन और 15 फरवरी की रैली हर लिहाज से ऐतिहासिक होने जा रही है. महाधिवेशन में पूरे देश से 2 हजार से ज्यादा प्रतिनिधि,पर्यवेक्षक और अतिथि भाग लेंगे. कई देशों से फैटरनल प्रतिनिधि भी महाधिवेशन में भाग लेंगे. 15 फरवरी की रैली भाकपा-माले की अबतक की सबसे बड़ी रैली होगी, जिसमें मजदूर-किसानों सहित स्कीम वर्कर, ठेका नियोजन मानदेय पर कार्यरत कर्मी और बेरोजगार नौजवानों की बड़ी हिस्सेदारी होगी. दीपंकर बुधवार को भाकपा-माले के 11 वें महाधिवेशन (15-20 फरवरी, पटना) के लिए प्रकाशित स्मारिका का विमोचन कर रहे थे।

दीपंकर के साथ माले के 11 वें महाधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष, चर्चित इतिहासकार प्रो. ओ पी जायसवाल, पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य, स्मारिका के संपादक संतोष सहर,पटना वि.वि. इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार, माले के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा व रामजी राय ने संयुक्त रूप से स्मारिका का विमोचन किया. इस अवसर पर एनआइटी के रिटायर्ड प्राध्यापक प्रो. संतोष कुमार सहित पटना के कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। स्मारिका में बिहार में अन्याय व उत्पीड़न के खिलाफ जारी संघर्ष और आधुनिक बिहार के इतिहास में उन अनेकानेक प्रगतिशील अध्यायों को गर्व के साथ याद किया गया है जिसने इस राज्य को कम्युनिस्ट व सोशलिस्ट आंदोलनों का जीवंत गढ़ बना दिया. स्मारिका की भूमिका में माले महासचिव ने लिखा है कि इसके जरिए हम उन नेताओं और शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं जिन्होंने बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूत नींव और लोकप्रिय चरित्र प्रदान किया है.

स्मारिका 8 खंडों में विभाजित है. इसकी शुरूआत बिहार में संघर्ष की ऐतिहासिक परंपरा पर प्रो. ओपी जायसवाल के लेख से होती है. इसमें भाकपा-माले के ऐतिहासिक दस महाधिवेशनों को याद किया गया है जो पार्टी के विकास की विभिन्न मंजिलों के द्योतक हैं. यह लेख पार्टी के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय शिक्षा विभाग के प्रभारी अरिंदम सेन ने लिखा है.
इसके बाद आधुनिक बिहार में ऐतिहासिक संघर्ष की गौरव गाथा के अध्याय शुरू होते हैं. स्मारिका स्मारिका का संपादन समकालीन लोकयुद्ध के संपादक व केंद्रीय कमिटी के सदस्य संतोष सहर ने किया है. संपादन सहयोग में सुधीर सुमन, कुमार परवेज और संतलाल शामिल रहे हैं.

आंदोलन के सूत्रधार के बतौर बिहार में सामाजिक बदलाव के ऐतिहासिक संघर्ष के सूत्रधारों स्वामी सहजानंद सरस्वती, मास्टर जगदीश, का. सुब्रत दत्त, काॅ. विनोद मिश्र और काॅ. रामनरेश राम को याद किया गया है. संघर्ष का क्षितिज नामक अध्याय में सोशलिस्ट व वामपंथी नेताओं – कार्यानंद शर्मा, जेपी, नक्षत्र मालाकार, इंद्रदीप सिन्हा, जगन्नाथ सरकार, तकी रहीम, मधु लिमये, जगदेव प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर रामजतन शर्मा, पवन शर्मा और रामदेव वर्मा को – याद किया गया है.

समय की नजीर के अध्याय में – राहुल सांकृत्यायन, रामशरण शर्मा, राधाकृष्ण चैधरी, डीएन झा, विजय ठाकुर, पापिया घोष, डाॅ. एके सेन, डाॅ. पी गुप्ता, अरिवंद नारायण दास, प्रो. विनय कंठ, डाॅ. शैवाल गुप्ता, मनोज कुमार श्रीवास्तव और प्रो. डेजी नारायण – का स्मरण किया गया है. बिहार में साहित्य व संस्कृति से संदर्भित प्रतिरोध के स्वर साधक नामक अध्याय में शाद अजीमाबादी, हीरा डोम, भिखारी ठाकुर, रामवृक्ष बेनीपुरी, दिनकर, नागार्जुन, रेणु से लेकर बिजेन्द्र अनिल, दुर्गेन्द्र अकारी और मैनेजेर पांडे जैसे साहित्यकारों को स्मरण किया गया है.

भाकपा-माले आंदोलन के कुछ विशिष्ट नेताओं को ‘प्रेरणास्रोत’ के बतौर याद किया गया है, जिसमें लोकयुद्ध के पूर्व संपादक, बृजबिहारी पांडे, अशोक कुमार, बुद्धिजीवी प्रो. अरविंद कुमार सिंह के अलावा मगध क्षेत्र के चर्चित नेता शाह चांद, शाहाबाद से बच्चन सिंह, मिथिला से लक्ष्मी पासवान और शहीद चंद्रशेखर की मां कौशल्या देवी शामिल हैं.

अंतिम अध्याय में बिहार के खेत-खलिहानों में अपने प्राणों की आहूति देने वाले भाकपा-माले आंदोलन के युवा शहीद नेताओं की स्मृति संकलित की गई है. इसमें विरद मांझी (पटना), बूटन मुसहर (भोजपुर), गंभीरा प्रसाद (चंपारण), शीला (भोजपुर), ब्रजेश मोहन ठाकुर (पूर्णिया) वीरेन्द्र विद्रोही (जहानाबाद), मंजू देवी (जहानाबाद), शहीद चंद्रशेखर, राजेश्वर मोची, भैयाराम यादव आदि समेत तीन दर्जन से अधिक शहीदों का स्मरण किया गया है.