जीरो से कैसे सत्ता के हीरो बन गए लालू प्रसाद यादव

पटना

पटना से शिवानंद गिरि
राजद सुप्रीमो लालू यादव बीमार हैं और दिल्ली के एआईआईएमएस में इलाजरत हैं। लेकिन लालू आखिर कैसे जीरो से सत्ता के हीरो बन गए,आइए आज हम बताते है लालू की कहानी।

लालू प्रसाद यादव हिंदुस्तान की राजीनीति की एक ऐसा नाम जिसका नाम सुनते ही लोगो को मुस्कुराने पर मजबूर कर देते हैं। लालू ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र नेता के तौर पर किया था और बिहार के मुख़्यमंत्री बनने तक का सफर तय किया। इनकी जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव आये, लेकिन इन्होने हर मुश्किल का सामना बड़ी मजबूती से किया। चुनावी मंच हो या संसद भवन, जब भी ये भाषण देते थे लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाते थे। कहने का मतलब ये है की अपनी अनोखी बातचीत शैली से ये लोगो के दिलो ये राज करते थे।

लालू प्रसाद यादव का जन्म गोपालगंज बिहार के एक छोटे से गांव में किसान परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम कुंदन राय था जो एक किसान थे। लालू यादव के पिताजी के 6 बच्चे थे जिसमे से ये दूसरे नंबर पर आते है। ये किसान और गरीब परिवार से थे, तथा उस समय गांव में शिक्षा के प्रति लोग जागरूक नहीं थे। लेकिन इनकी रूचि पढाई में बहुत थी, इसीलिए ये अपने भाई के साथ पटना में रहकर पानी पढाई पूरी की।

ये पटना यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ़ लॉ और पोलिटिकल साइंस से मास्टर के डिग्री हासिल की। कॉलेज के दिनों से छात्र ही ये छात्र रजनीति में जुड़े थे और कई छात्र चुनाव लड़े और जीते भी, जिसका फायदा उन्हें राजनीतिक जीवन में भी हुआ।

राजनीति में आने से पहले लालू यादव बिहार के वेटनरी कॉलेज में एक क्लर्क की नौकरी करते थे। लेकिन राजनीति से जुड़े हुए थे। सन 1970 की बात है जब ये पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के महासचिव चुने गए और 3 साल बाद ये अध्यक्ष का चुनाव लड़े और उसमे भी इसने जीत मिली।

वर्ष 1974 में जय प्रकाश नारायण के द्वारा चलाये जा रहे “बिहार आंदोलन” में हिस्सा लिया, और इस दौरान वे भारतीय राजीनति के कई राजनेताओ से मिले तथा पार्टी में जगह बनाने में भी सफल हुए और इस तरह शुरू हुआ भारतीय राजनीति में लालू प्रसाद यादव का राजनितिक सफर।

29 साल की उम्र में लालू जी को जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में छपरा से लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला और ये साल था 1977 का, जब ये वो चुनाव जीत गए और लोकसभा के सदस्य बन गए, लेकिन किसी कारणवश जनता पार्टी की सरकार गिर गई, जिसके बाद इन्होने जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया।

जनता पार्टी छोड़ने के बाद लालू ने जनता दल के साथ राजनीति का आरम्भ किया और साल 1980 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े, जिसमें इन्हें सफलता भी मिली और ये चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।

अलग बातचीत करने की शैली से ये लोगों के दिलों पर राज करते थे, जिसका फयदा ये हुआ कि 10 मार्च 1990 को ये बिहार के मुख्यमंत्री बन गए, उसके बाद इन्हे 1995 में भी मुख्यमंत्री चुना गया।

बात साल 1997 की है जब लालू जनता दल से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी की स्थापना की। जिसका नाम था राष्ट्रीय जनता दल (RJD), ये RJDके अध्यक्ष थे। लालू की पार्टी बिहार में लगातार अपना सरकार बनाने में सफल हो रही थी और 2002 का चुनाव जितने के बाद इन्होने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया।

ये अपने सफर में लगातार मेहनत करते रहे और साल 2004 में छपरा लोकसभा सीट से चुनाव जीता, उस समय केंद्र में UPA की सरकार थी, इन्होने अपना समर्थन UPA को दिया और इन्हे रेल मंत्री पद का भार सौंपा गया। रेलमंत्री रहते हुए लालू ने रेलवे को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाया। इसका सभी लोगों ने प्रशंसा किया।

जैसे जैसे लालू यादव राजनीति में आगे बढ़ते गए, वैसे वैसे ये विवादों और घोटालो में फसते चले गए। एक साल 1997 में चारा घोटाला और 2000 में आय से ज्यादा सम्पति होने का आरोप इनके ऊपर लगा और इस कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। नतीजा ये हुआ कि ये 2005 का विधान सभा हार गए उसके बाद इन्हे संभलने का मौका भी नहीं मिला और इनकी पार्टी लगातार चुनाव हारती रही।