कर्पूरी जी के लिए भारत रत्न की मांग एक लोकप्रिय मांग थी
मोदी राज में धर्म जैसे व्यक्तिगत मसलों का हो रहा सरकारीकरण
स्टेट डेस्क/पटना : कर्पूरी ठाकुर की जयंती से गांधी शहादत दिवस 30 जनवरी तक माले द्वारा आयोजित संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ जन अभियान की शुरुआत आज से हो गई. कर्पूरी ठाकुर के गृह जिले समस्तीपुर में संकल्प सभा के आयोजन और समस्तीपुर से कर्पूरी ग्राम तक मार्च के जरिए इस अभियान की शुरुआत हुई. भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने अपनी भागीदारी निभाई.
अन्य प्रमुख नेताओं में पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, धीरेंद्र झा, के डी यादव, महबूब आलम, गोपाल रविदास, संदीप सौरभ, मीना तिवारी, शशि यादव, सत्यदेव राम आदि आज के कार्यक्रम में शामिल हुए. समस्तीपुर के सरकारी बस स्टैंड में एक विशाल संकल्प सभा हुई. उसके पहले कर्पूरी जी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया.
सरकारी बस स्टैंड में उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए माले महासचिव ने कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी जी को बहुत कम समय मिला, लेकिन उन्होंने इस कम समय में आरक्षण और वंचितों के लिए शिक्षा के पक्ष में जो काम किए, वह उल्लेखनीय है. उन्होंने अपने छोटे से मुख्यमंत्री के काल में सभी नक्सल पंथियों की जेल से रिहाई करवाई. सत्ता रहने की कभी चिंता नहीं की. विपक्ष के नेता के बतौर उन्होंने जन संघर्षों का नेतृत्व किया. जन संघर्षों के बल पर आगे बढ़ाने के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.
कर्पूरी जी के लिए भारत रत्न की मांग लंबे समय से हो रही थी. उन्हें भारत रत्न का पुरस्कार मिला है यह अच्छी बात है, लेकिन वंचितों के आरक्षण और शिक्षा के पक्ष में होने के कारण उन्हें सांप्रदायिक – सामंती ताकतों का हमेशा अपमान झेलना पड़ा. ये कोई और नहीं बल्कि भाजपा के ही लोग थे जो उन्हें अपमानित कर रहे थे. .
भारत रत्न मिलने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी का अपराध कहीं से काम नहीं होता है.
यदि आज जीवित होते तो समाजवादी-साम्यवादी एकता के महान समर्थक कर्पूरीजी आज संविधान को बचाने और भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर फासीवादी हमले को नाकाम करने की लड़ाई में हमारा नेतृत्व कर रहे होते. यह व्यापक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक खेमे, खासकर समाजवादियों और कम्युनिस्टों की जिम्मेदारी है कि वे जननायक कर्पूरी ठाकुर की प्रेरक विरासत को आगे बढ़ाएं, जब धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का संवैधानिक ढांचा और समाजवाद और सामाजिक न्याय की भावना फासीवादी ताकतों के अभूतपूर्व हमले का सामना कर रही है.
2024 का चुनाव आर-पार की लड़ाई है. मोदी सरकार से देश को छुटकारा दिलाना ही पड़ेगा. वर्ना देश नहीं बचेगा. सब मिलकर इस लड़ाई को आगे बढ़ाएं.