कुलदीप नैयर स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार से नवाजे गये देश के जाने-माने पत्रकार उर्मिलेशहमारे मीडिया के बडे हिस्से का लोकतंत्र और संविधान को लेकर न तो गहरी प्रतिबद्घता है और न ही उसके जेनुइन सरोकार हैं
मीडिया स्वामित्व के प्रश्न पर संसद में 2013 में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से सम्बद्ध संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर नहीं हुई कार्रवाई
सेंट्रल डेस्क: हमारे मीडिया का बडा हिस्सा खासतौर पर टेलीविजन और ज्यादातर भाषायी अखबार ‘गोदी’ बन गये हैं. अंग्रेजी के कई अखबार मुश्किल और चुनौती के बावजूद एक हद तक प्रोफेशनल बने हुए हैं. उनके यहां पत्रकारिता मरी नहीं है. यह सुखद है. भारतीय मीडिया का बडा हिस्सा सिर्फ ‘गोदी’ ही नहीं है,
वह एक ही तरह के वर्ण-वर्चस्व से ग्रस्त होने के कारण विविधता-विहीन भी है. मीडिया के स्वामित्व और मीडिया के पत्रकारीय संचालन-संपादन में सिर्फ उच्चवर्णीय हिंदू समुदाय के लोग पूर्णत: हावी हैं. ये बातें देश के जाने-माने पत्रकार उर्मिलेश ने कहीं. वे शुक्रवार को दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित सम्मान समारोह में बोल रहे थे।
उर्मिलेश को कुलदीप नैयर स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार से नवाजे जाने पर आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक प्रो आशीष नंदी ने की. मंच पर प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशान्त, सचिव अशोक कुमार, विजय प्रताप मौजूद थे. उर्मिलेश को सम्मान राशि एक लाख रुपये और स्मृति चिन्ह भेंट किया गया.
इस मौके पर अपने विशेष संबोधन में लेखक-पत्रकार उर्मिलेश ने समकालीन भारतीय पत्रकारिता की समस्याओं और चुनौतियों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, हमारे मीडिया के बडे हिस्से का लोकतंत्र और संविधान को लेकर न तो गहरी प्रतिबद्घता है और न ही उसके जेनुइन सरोकार हैं क्योंकि उसकी संरचना उसे लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधरता से रोकती है.
न तो उसके स्वामित्व में विविधता है और न पत्रकारिता के संचालन-संपादन करने वाले कर्मियों के बीच विविधता है. उत्तर और मध्य भारत में यह बहुत साफ-साफ दिखता है. भारत की सामाजिक विविधता मीडिया में क्यों नहीं प्रतिबिम्बित होती?
मीडिया स्वामित्व के प्रश्न पर भारतीय संसद में सन् 2013 में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से सम्बद्ध संसद की स्थायी समिति की एक बहुत महत्वपूर्ण रिपोर्ट पेश की गई. उसने मीडिया स्वामित्व के कानून में जरूरी लोकतांत्रिक सुधार के लिए कुछ बड़े सुझाव दिये थे. उस रिपोर्ट पर सरकारों ने कोई सुधार कार्यक्रम नहीं शुरू किये. संसदीय समिति के अलावा देश के अनेक संपादकों ने भी समय-समय पर क्रॉस मीडिया स्वामित्व के सवाल को संबोधित करने की सरकार से मांग की. पर कभी कोई पहल नहीं! इससे सत्ता और मीडिया संस्थानों के मालिकों के रिश्तों को समझना कठिन नहीं है.
सम्मान समारोह में अनेक पत्रकार, लेखक, शिक्षक और छात्र मौजूद थे. इससे पहले यह सम्मान रवीश कुमार, निखिल वागले, अजीत अंजुम, आरफा खानम शेरवानी को मिल चुका है. उर्मिलेश यह सम्मान पाने वाले पांचवें पत्रकार हैं. उन्हें वर्ष 2023 के लिए नवाजा गया है.