बिहार की राजनीति में नेतृत्व संकट, नीतीश कुमार की सेहत और जेडीयू की चिंता

पटना

पटना, अशोक “अश्क” बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के नेताओं को अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। इसकी प्रमुख वजह नीतीश कुमार की सेहत को लेकर उठते सवाल और जेडीयू में उनके उत्तराधिकारी को लेकर असमंजस है।

बीजेपी बिहार में कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है। जब भी उसने सत्ता में भागीदारी की, वह जेडीयू और नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही रही। अब जब उनकी सेहत पर सवाल उठ रहे हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के लिए बिहार में कोई बड़ा अवसर बनता है या नहीं।

साथ ही, सवाल यह भी है कि क्या राष्ट्रीय जनता दल को इसका फायदा मिल सकता है? पटना के वीरचंद पटेल स्थित जेडीयू दफ्तर में अभी भी नीतीश कुमार के पोस्टर लगे हुए हैं, जिनमें से एक पर लिखा है 2025 से 30, फिर से नीतीश। लेकिन जेडीयू के कई नेता इस बात को लेकर आशंकित हैं कि पार्टी का भविष्य क्या होगा।

एक वरिष्ठ जेडीयू नेता के अनुसार, हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी में शामिल हुए थे, लेकिन उनके बाद कौन पार्टी संभालेगा? यह सवाल पार्टी के भीतर गहराता जा रहा है। आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव और जनसुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने कई बार नीतीश कुमार की सेहत पर सवाल उठाए हैं।

तेजस्वी यादव ने तो यहां तक कहा कि नीतीश कुमार अब होश में नहीं हैं और किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं। प्रशांत किशोर ने भी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाए हैं। हालांकि, जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक इन आरोपों को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि उम्र के साथ जो सामान्य स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, वही नीतीश कुमार को भी हैं, लेकिन वे अब भी सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।

हालांकि, उनकी प्रगति यात्रा भी स्वास्थ्य कारणों से स्थगित की गई थी। बीजेपी के नेता संजय पासवान का कहना है कि नीतीश कुमार की सेहत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है और वे अब भी प्रशासन को प्रभावी ढंग से संभाल रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। हाल के दिनों में नीतीश कुमार की सार्वजनिक गतिविधियां सीमित हो गई हैं और उनके भाषण भी कम हो गए हैं।

वहीं, आरजेडी की प्रवक्ता प्रियंका भारती का कहना है कि जेडीयू में नेतृत्व की कमी के कारण जल्द ही पार्टी का विलय बीजेपी में हो सकता है। नीतीश कुमार के बाद जेडीयू का नेतृत्व कौन करेगा, यह सवाल पार्टी के भीतर प्रमुख बन चुका है। जेडीयू के इतिहास में कई नेताओं का उभार देखने को मिला, जिनमें सबसे प्रमुख नाम आरसीपी सिंह का था। वे कभी पार्टी के मुख्य रणनीतिकार माने जाते थे, लेकिन बाद में बीजेपी में शामिल हो गए।

इसके अलावा, प्रशांत किशोर, ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता भी समय-समय पर उभरते रहे, लेकिन वे भी किनारे होते गए। प्रशांत किशोर ने अपनी अलग पार्टी बना ली, ललन सिंह केंद्र में मंत्री हैं, लेकिन पार्टी में उनका प्रभाव सीमित है, और उपेंद्र कुशवाहा अब जेडीयू से अलग हो चुके हैं। 2024 में पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा का नाम संभावित उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया था, लेकिन दिसंबर 2024 में उनकी राजनीतिक यात्राओं पर रोक लगा दी गई।

वर्तमान में जेडीयू के भीतर सबसे प्रभावशाली नामों में संजय झा, विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी शामिल हैं, लेकिन तीनों ही दूसरे दलों से जेडीयू में आए हैं। संजय झा बीजेपी से जुड़े रहे हैं, जबकि अशोक चौधरी और विजय कुमार चौधरी कांग्रेस से आए हैं।ऐसे में, बिहार की राजनीति में आने वाले महीनों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

अगर नीतीश कुमार की सेहत को लेकर सवाल गहराते रहे, तो जेडीयू के लिए नेतृत्व संकट और भी गंभीर हो सकता है, जिससे बीजेपी और आरजेडी दोनों को अपने-अपने तरीके से फायदा मिल सकता है।