स्टेट डेस्क/पटना : भाकपा- माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण ने बिहार में गरीबी की जो भयावह तस्वीर पेश की है, उसके मद्देनज़र बिहार सरकार द्वारा गरीब परिवारों को दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा स्वागतयोग्य है, लेकिन इससे गरीबी का मुकम्मल समाधान नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि 34% से अधिक परिवारों का गरीबी रेखा के नीचे बने रहना बेहद चिंताजनक है और इसके लिए बिहार सरकार को एक संपूर्ण कार्य योजना बनानी चाहिए. राज्य की बड़ी आबादी अभी भी खेती पर निर्भर है, लेकिन खेती लगातार घाटे में चल रही है. कई रिपोर्टों से यह भी जाहिर है कि यह खेती पट्टे पर काम करने वाले किसानों के जरिए होती है, लेकिन उन्हें कोई कानूनी हक हासिल नहीं है. इस संरचना में बदलाव किए बिना बिहार को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, लेकिन भाजपाई बुलडोजर के चलते पिछले 15 वर्षों से यह प्रक्रिया रुकी हुई है, जिसके कारण बड़ी आबादी गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं निकल पा रही है.
बिहार में भारतीय जनता पार्टी लंबे समय तक शासन में रही है. राज्य के बंटवारे के बाद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का सवाल एक पॉपुलर सवाल था लेकिन भाजपा ने विशेष राज्य के दर्जे पर बिहार की जनता के साथ हमेशा मजाक ही किया है. यहां तक कि 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित किया गया पैकेज भी बिहार को अभी तक नहीं मिला है. मनरेगा की राशि में लगातार कटौती की जा रही है और मोदी सरकार उसे मारने की साजिश रच रही है. स्कीम वर्करों को न्यूनतम मानदेय भी नहीं मिलता. नौकरियां खत्म की जा रही हैं. भाजपा राज में गरीबी बढ़ी ही है. केंद्र सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं में कटौती इसके लिए जिम्मेवार है. ऐसी स्थिति में भला बिहार गरीबी के दुष्चक्र को कैसे तोड़ सकता है?
इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए कृषि और भूमि सुधारों के साथ-साथ उद्योग-धंधों का विकास बेहद आवश्यक है, लेकिन आज बिहार में उद्योग-धंधे न के बराबर रह गए हैं. सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए. बाहरी पूंजी के भरोसे रहने की बजाय सरकार को अपनी पहल पर राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास पर जोर देना चाहिए ताकि एक बड़ी आबादी को रोजगार उपलब्ध हो सके.
माले राज्य सचिव ने कहा कि राज्य में ऐसे कई उद्योगों की भरपूर संभावना है. बाढ़ और सुखाड़ का स्थाई समाधान करने की भी जरूरत है. यदि ये सारी चीजें हों तो निश्चित रूप से बिहार गरीबी रेखा से बाहर आ सकता है
यह भी कहा की राज्य में शिक्षा का स्तर अब भी निम्नतम बना हुआ है. हाल में एक लाख से अधिक शिक्षकों की बहाली हुई है, यह स्वागत योग्य है, लेकिन इस बीच 23 लाख से अधिक बच्चों के नाम स्कूलों से काट दिए गए. इनमें बड़ी आबादी दलित और गरीबों के बच्चों की ही है. सरकार को इस तरह के तानाशाही फरमान से बचना चाहिए. यदि बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो उसकी ठोस वजहों को खोजकर समस्त समस्या का समाधान करना चाहिए, न कि उनका नाम ही काट देना चाहिए.