DESK : कांग्रेस कमेटी की ओर से बिहार के 39 जिला अध्यक्षों की सूची जारी कर दी गई है, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि इसमें 66 प्रतिशत यानी कुल 26 जिला अध्यक्ष सवर्ण हैं. इसमें सबसे अधिक भूमिहार जाति के 11, ब्राह्मण 8, राजपूत 6 और कायस्थ से एक जिला अध्यक्ष बनाया गया है. जबकि मुस्लिम से 5, यादव से 4, दलित से 3 और कुशवाहा जाति से एक जिला अध्यक्ष को चयन किया गया है. इसमें सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह भी भूमिहार जाति से आते हैं और जिला अध्यक्ष की सूची में 33 वें नंबर धनंजय शर्मा का है जो अखिलेश सिंह के भतीजा हैं. लगातार तीसरी बार धनंजय शर्मा को अरवल से जिलाध्यक्ष बनाया गया है. मुख्य बात यह है कि तीन महीना पहले रायपुर में कांग्रेस ने यह एलान किया गया था कि ओबीसी दलित आदिवासी के लिए 50 प्रतिशत पदों पर आरक्षण किया जाएगा, लेकिन तीन महीने बाद ही बिहार में इसका उल्लंघन देखने को मिला है. वहीं, इस बिहार की राजनीति में बयानबाजी शुरू हो गई है.
नए जिलाध्यक्षों की सूची से तो यह साफ है कि कांग्रेस पार्टी बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी के प्रयास में जुटी हुई है. बिहार में जातिगत वोटिंग होती है और ऐसा माना जाता है कि सवर्ण के वोट अधिकांश बीजेपी में जाते हैं, जो कभी कांग्रेस का जनाधार था. अब कांग्रेस उसे फिर अपने पाले लाने की प्रयास कर रही है और यह प्रयास बहुत पहले से किया जा रहा है, जब अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि 2024 के लोकसभा में कांग्रेस का यह प्रयास कितना सफल होगा? यह कहना मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस के दलित समाज से आने वाले बड़े नेता का भी का मानना है कि इसमें अभी परिवर्तन होगा, हालांकि कुछ बड़े नेता कैमरे पर ना आते हुए यह भी कहा कि यह निर्णय पूरी तरह गलत है.
दलित समाज से आने वाले बिहार में 26 साल से लगातार विधायक और दो बार मंत्री रह चुके डॉ. अशोक राम ने कहा कि अभी यह इस निर्णय पर कुछ भी बोलना जल्दीबाजी होगी. इनमें कई को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया गया है, इसमें अभी पूरी तरह संगठन पर काम नहीं हुआ है. इसमें अभी और लोग जोड़ सकते हैं और कई लोगों को निकाला भी जा सकता है. कुछ दिनों में यह साफ हो जाएगा कि कमेटी में किस समाज के कितने लोग हैं. वहीं, वर्तमान कांग्रेस के दलित समाज से आने वाले एमएलए प्रतिमा दास ने कैमरे पर कुछ न कहते हुए उन्होंने बताया कि पार्टी का यह निर्णय बिल्कुल गलत है. इसे प्रदेश अध्यक्ष ने अपने तरीके से किया है, अपने समाज के लोगों को ज्यादा जिलाध्यक्ष बनाया है, इसका खामियाजा 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ सकता है.
हालांकि सवर्ण के कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इससे संगठन मजबूत होगा और जिलाध्यक्ष का चयन चुनावी प्रक्रिया के तहत हुआ है. इसमें जो लोग चुनाव की प्रक्रिया में नहीं आए हैं वह कैसे चयन हो सकते थे. नवनिर्वाचित अरवल जिला के जिलाध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के भतीजे धनंजय शर्मा का कहना है कि हमारे चयन पर परिवारवाद बताना बिल्कुल गलत है. अखिलेश सिंह पिछले छह महीना के प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, जबकि इससे पहले दो प्रदेश अध्यक्ष के समय से ही हम तीन बार जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. हालांकि मुझे इस बात की दुखी है कि मुझे जिलाध्यक्ष से ऊपर उठकर पद मिलना चाहिए था, लेकिन मैं पार्टी के लिए काम करूंगा. सवर्ण की संख्या ज्यादा होने के मामले पर उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय कमेटी का निर्णय है, इसमें हम लोग कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन 2024 के चुनाव में हम लोग का संगठन पूरी मजबूती के साथ काम करेगा और हम लोग सभी सीटों पर अपने अलायंस के साथ जीत हासिल करेंगे.
वही, कांग्रेस के जिला अध्यक्षों की सूची के मामले पर बीजेपी ने भी कांग्रेस को वोट कटवा बताया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि बिहार में कांग्रेस तो जेडीयू और आरजेडी के एजेंडा पर चल रहे हैं और आरजेडी-जेडीयू से जो डायरेक्शन मिलता है उसी के हिसाब से वोट कटवा के रूप में बिहार में कांग्रेस को इस्तेमाल किया जाता है. विजय सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस को किसी भी जाति से सहानुभूति नहीं है. सत्ता के लिए समझौता किसी के साथ भी कांग्रेस कर सकती है और किसी को बाहर कर सकती है.
वहीं, कांग्रेस के समर्थन में आरजेडी ने कहा कि सवर्ण का वोट तो कांग्रेस का पुराना रहा है. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि सवर्ण पुराने कांग्रेसी रहे हैं, बीजेपी तो बाद में आई है और सवर्ण के वोट पर सेंधमारी की है, लेकिन अब पुराने कांग्रेसी लौट रहे हैं. कांग्रेस संगठन मजबूती के लिए जो निर्णय लिया है बिल्कुल सही है. संगठन मजबूत होगा और पुराने लोग का फिर से वापस आ जाएंगे.