विक्रांत। बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य प्रो शिवजतन ठाकुर ने कहा है कि सदन के बाहर की गयी आलोचना को आधार बनाकर किसी सदस्य की सदस्यता खत्म नहीं की जा सकती है. राजद एमएलसी प्रो रामबली सिंह के मामले में राजद व विधान परिषद अध्यक्ष की ओर से शुरू की गयी कार्रवाई की कवायद पर श्री ठाकुर ने संवैधानिक पहलुओं को सामने रखा है.
कहा है कि लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष बलराम जाखड़ और रवि राय का नियमन इस मामले में उल्लेखनीय है. नियमन में स्पष्ट कहा गया है कि संसद के बाहर किसी भी सदस्य द्वारा दल विरोधी कार्य के लिए उसकी सदस्यता समाप्त नहीं की जा सकती है.
बिहार विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष स्वर्गीय गुलाम सरवर ने यह स्पष्ट नियमन दे रखा है कि सदन के बाहर किसी भी सदस्य की गतिविधियों के लिए राजनीतिक दल की औपचारिक अनुरोध पर किसी विधायक की सदस्यता समाप्त नहीं की जा सकती है. यह नियमन 18 अप्रैल 1991 में दिया गया है, जो बिहार विधानसभा के अभिलेख में दर्ज है. इस मामले में मंगलवार (नौ जनवरी) को रामबली सिंह को पक्ष रखने के लिए सभापति ने बुलाया है.
सदस्यता खत्म करने का आधार ही नहीं बन रहा
प्रो ठाकुर के मुताबिक, 10 वीं पारित अनुसूची के अनुसार जन-प्रतिनिधि की सदस्यता केवल तीन ही परिस्थितियों में समाप्त की जा सकती है. पहले तो जन-प्रतिनिधि द्वारा स्वेच्छा से राजनीतिक दल का त्याग कर दूसरे दल में शामिल होना. दूसरे, राजनीतिक दल के निर्देशों का उल्लंघन कर दल के विरुद्ध सांसद/ विधान मंडल में दल के निर्देश के विरुद्ध मतदान करना.
तीसरी स्थिति ये कि दल के निर्देश की अवज्ञा कर सांसद / विधान मंडल में मतदान देने से अलग रहना.उपरोक्त तीन परिस्थितियों के आधार पर ही राजनीतिक दल के सचेतक के अनुरोध पर संसद / विधानमंडल की सदस्यता समाप्त की जा सकती है. जबकि, रामबली सिंह ने इन तीनों में से किसी एक का भी उल्लंघन नहीं किया है.
अत्यंत पिछड़ी जातियों के मामले में सरकार की आलोचना की गयी थी
उन्होंने कहा है कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग के नेता और बिहार विधान परिषद के सदस्य प्रोफेसर रामबली सिंह चंद्रवंशी की तरफ से राजद और सरकार की आलोचना की गयी थी. इसमे कहा गया था कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार अत्यंत पिछड़ा वर्ग को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है.
इसी आलोचना के कारण राजद के सचेतक ने बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष को याचिका देकर दल की गतिविधियों के विरोध करने के आरोप में प्रोफेसर रामबली सिंह की सदस्यता समाप्त करने के लिए याचिका दी है. इस याचिका पर बिहार विधान परिषद ने प्रोफेसर रामबली सिंह को कारण बताओं नोटिस जारी किया था कि क्यों नहीं, बिहार विधान परिषद से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाए?
15 दिसंबर 2023 को प्रोफेसर रामबली सिंह ने इस नोटिस का जवाब दिया. संविधान की 10वीं अनुसूची एवं बिहार विधान परिषद के डिसक्वालिफिकेशन ऑफ रूल को उद्धरित करते हुए बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था कि दल के अनुरोध पर उनकी सदस्यता समाप्त नहीं की जा सकती है. नौ जनवरी को सभापति बिहार विधान परिषद के कक्ष में सुनवाई के लिए बुलाया गया है.
36% अति पिछड़े वर्ग में आक्रोश
श्री ठाकुरने कहा कि बिहार के 36% अति पिछड़े वर्ग के सदस्यों में इस मामले को लेकर काफी आक्रोश है. यदि समय रहते इसे ठीक नहीं किया गया तो 2024 लोकसभा चुनाव में सरकार और राजद को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. साथ ही यह भी कहा कि लालू प्रसाद बहुत परिपक्व अनुभवी और सामाजिक न्याय के प्रबल पुरोधा रहे हैं. उनसे यह अपेक्षा है कि राजनीतिक स्थिति बिगड़ने के पहले उसे वे अवश्य नियंत्रित कर लेंगे.