DESK : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ सवाल उठाया है. सुशील मोदी ने कहा है कि समलैंगिक विवाह एक सामाजिक मुद्दा है. न्यायपालिका को इसकी वैधता पर फैसला नहीं करना चाहिए. इसके बजाय संसद और समाज में इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.
विवाह एक ऐसा प्रावधान है जिसमें पुरुष और महिला दोनों एक साथ रहते हैं. बच्चे पैदा करके मानव श्रृंखला को आगे बढ़ाते हैं. मोदी ने कहा है कि गोद लेने, घरेलू हिंसा, तलाक और ससुराल में रहने के अधिकार से संबंधित कानून भारत के भीतर केवल पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह की संस्था से जुड़े हैं. समलैंगिक विवाह को न तो मान्यता दी जाती है और न ही किसी असंहिताबद्ध व्यक्ति कानूनों और संहिताबद्ध विधियों द्वारा मान्यता दी जाती है.
कहा कि वो वामपंथी उदारवादियों और कार्यकर्ताओं की मांगों के खिलाफ हैं जो इस विवाह को पश्चिमी प्रभाव के तहत कानूनी मान्यता देना चाहते हैं. मैं भारत सरकार से आग्रह करता हूं कि वह अदालत में समलैंगिक विवाह का कड़ा विरोध करें. यह देश में निजी कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ पूरी तरह से तबाही मचाएगा. मोदी ने कहा कि देश में समान लिंग के लोगों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देने की बढ़ती मांग पर उन्हें चिंता हो रही है. ये कानून कहीं से भी सही नहीं है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम 1955 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर नोटिस जारी किया था. ये सुनवाई बीते महीने हुई थी. इसके तहत समलैंगिक विवाह को भारत में कानूनी मान्यता की मांग की गई थी. ये मामला बुधवार को शुरू हुआ था जब एक भारतीय नागरिक और अमेरिकी नागरिक ने भारत में अपने विवाह को कानूनी प्रक्रिया के तहत मान्य देने को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. साल 2014 में अमेरिका में उनकी शादी हो चुकी थी. वह अब शादी को विदेशी विवाह अधिनियम 1969 के तहत भारत में रजिस्टर्ड करवाना चाहते हैं. इसके लिए कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया था.