शिवानंद ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मौखिक विरोध की औपचारिकता निभाने के अलावा कुछ नहीं हो रहा है! INDIA गठबंधन बड़े आंदोलन की करें घोषणा!
स्टेट डेस्क/पटना: राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा के पूर्व सदस्य शिवानंद तिवारी ने मोदी सरकार की बढ़ती मनमानी के खिलाफ जुबानी जंग से बाहर निकलकर व्यापक जनांदोलन छेड़ने की जरूरत बताई है। तिवारी ने अपने बयान में कहा कि अब तक ज़ाहिर हो चुका है कि नरेंद्र मोदी जी की बनावट में लोकतंत्र और किसी भी वैधानिक व्यवस्था के प्रति घोर अनादर का भाव है.
चाहे जैसे भी हो अपने मक़सद को हासिल करने की व्यग्रता उनमें बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती है. दूसरी तरफ़ इंडिया महागठबंधन है. जिसने मोदी सरकार की नीतियों या कामकाज की आलोचना संबंधी अखबारी बयान या भाषण में सरकार की आलोचना करने के अलावा मोदी सरकार की नीतियों और कार्यकलाप के विरूद्ध जनता को आंदोलित करने के लिए कोई गंभीर कार्यक्रम नहीं चलाया है. जिस तरह का मनमाना हो रहा है उस पर विपक्ष की ओर से मौखिक विरोध की औपचारिकता निभाने के अलावा कुछ नहीं हो रहा है.
तिवारी ने कहा कि न्यूज़ क्लिक के पत्रकारों को जिस प्रकार पुलिस उनके घर से पकड़कर ले गई. घंटों उनके साथ पूछताछ की गई. जिस प्रकार के सवाल उनसे किये गये जैसे किसानों, नौजवानों या अकलियतों के सवालों पर होने वाले आंदोलनों की ख़बरों पर लिखना या बोलना अपराध हो. न्यूज़ क्लिक पर आरोप लगा है कि उसने अमेरिका स्थित चीन से जुड़ी संस्था से इंडिया के विरूद्ध प्रचार अभियान चलाने के लिए पैसे लिए हैं.
इस अनर्गल आरोप का पत्रकारों ने खंडन किया है. सरकार की नज़रों में अगर यह अपराध है तो ‘प्रधानमंत्री केयर फंड’ में चीनी कंपनी की ओर से राशि किस क़ानून के अंतर्गत जमा करने की इजाज़त दी गई ? सरकार ने उस पैसे पर तो कोई एतराज़ नहीं उठाया. इसलिए चीन से पैसा लेना अपने आप में कोई अपराध नहीं है. सवाल तो यह है कि क्या न्यूज़ क्लिक ने सचमुच देश हित के विरूद्ध चीन का समर्थन किया है!
इसका कोई प्रमाण एजेंसी की ओर से सार्वजनिक रूप से नहीं दिया गया है. न्यूज़ क्लिक के संचालक को आतंकवाद अवरोधी क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया है. यह क़ानून हमारे लोकतांत्रिक संविधान की आत्मा के विरूद्ध है. इस क़ानून के तहत गिरफ़्तार व्यक्ति को लंबे अरसे तक जेल में सड़ाया जा सकता है.
अभी आप पार्टी के संजय सिंह को गिरफ़्तार किया गया.
इसके पहले से सिसोदिया या आप के अन्य मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ़्तार किए गए. सिसोदिया के घर और दफ़्तर की एक से ज़्यादा दफ़ा तलाशी ली गई. लेकिन इन तलाशियों में ऐसा कुछ नहीं मिला जिसके ज़रिए उन पर भ्रष्टाचार के आरोप पर संदेह जताया जा सकता हो. न ही आज तक सिसोदिया के यहाँ से कोई अवैध संपत्ति बरामद की गई है.
दूसरी ओर जिन अजीत पवार के विषय में स्वयं प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इन्होंने छः हज़ार करोड़ रुपए लूटा है. मैं इनको छोड़ूँगा नहीं. वही अजीत पवार इन्हीं के राज्य सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं.
जिस तरह का मनमाना हो रहा है उस पर विपक्ष की ओर से मौखिक विरोध की औपचारिकता निभाने के अलावा कुछ नहीं हो रहा है.
याद कीजिए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के गठन पर क्या फ़ॉर्मूला सुझाया था ! पिछली मर्तबा सरकार ने अरूण गोयल को जिस प्रकार बग़ैर किसी पारदर्शी तरीक़े का इस्तेमाल किए चुनाव आयोग का सदस्य बना दिया उस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता ज़ाहिर की थी. इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के पाँच सदस्यों की संवैधानिक पीठ ने आयोग के गठन का एक फ़ॉर्मूला तय किया था.
उक्त फ़ॉर्मूला के तहत तीन सदस्यीय समिति के द्वारा आयोग के सदस्यों का चयन होगा. उस समिति में प्रधानमंत्री, संसद में सबसे बड़े विरोधी दल के नेता के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सुप्रीम कोर्ट का कोई जज होगा. सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने चयन की एक विश्वसनीय प्रक्रिया निर्धारित कर दी थी.
लेकिन लोकसभा के पिछले सत्र के लिए सरकार ने चुनाव आयोग के गठन के लिए जिस प्रक्रिया का निर्धारण किया था वह सरकार की मंशा और नियत को ज़ाहिर करता है. उस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री द्वारा नामित सरकार का ही कोई एक मंत्री और लोकसभा में सबसे बड़े विरोधी दल का नेता उक्त चयन समिति का सदस्य होगा. हालाँकि उक्त बिल को संसद में पेश नहीं किया गया. लेकिन इससे सरकार की मंशा का पता चलता है.
अभी बिहार में जातिय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के प्रकाशन ने मोदी सरकार को हिला दिया है. मोदी जी इसके विरोध में जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं वही उनकी बेचैनी का इज़हार कर रहा है. दूसरी ओर वंचित समाज में जातिगत गणना के नतीजे को लेकर बेचैनी है. देश की इस विशाल आबादी को देश के संसाधनों में अब तक क्या मिला है. देश ने जो भी प्रगति की है उसमें इसी विशाल आबादी का श्रम लगा है. लेकिन समाज में आज भी उनकी स्थिति दोयम दर्जे की बनी हुई है.
इसलिए लोकतंत्र को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों, अकलियतों और महिलाओं की गणना और उनकी सामाजिक, आर्थिक शैक्षणिक सर्वेक्षण की तत्काल शुरुआत करने के लिए इंडिया गठबंधन को देश भर में आंदोलनात्मक कार्यक्रम शुरू करना चाहिए. ऐसे कार्यक्रमों के ज़रिए ही वंचित समाज में लोकतंत्र के प्रति जागरूकता और उसकी रक्षा के लिए संकल्प पैदा किया जा सकता है.