दलितों को उद्योग धंधा लगाने को प्रोत्साहित करने के लिए DICCI के कार्यक्रम में बोले मंत्री, हम ऋण देने बैठे हैं ,लेने वाले नहीं आ रहे !
Hemant Kumar/ Patna: क्या दलितों को सरकारी नौकरी के इंतजार में जिंदगी खपा देनी चाहिए या कुछ और करना चाहिए! क्या उसे उद्यमी बनने के लिए नहीं सोचना चाहिए! क्या यह सच नहीं है कि दलित समाज का बुद्धिजीवी दलितों को बिजनेसमैन बनने से रोकता है! और जिन लोगों ने उद्यम की राह पकड़ी है. उनकी दुश्वारिरयां क्या हैं. उन दुश्वारियों का हल क्या है! इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करता दिखा दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ( DICCI) बिहार चैप्टर की ओर से आयोजित “बिजनेस वर्कशॉप ऑन एक्सपोर्ट ऑफ एग्रीकल्चर प्रोड्यूस!”
DICCI की ओर से आयोजित और APEDA तथा उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम में बिहार सरकार के उद्योग मंत्री समीर कुमार महासेठ मुख्य अतिथि थे. कांग्रेस के विधायक और विधानसभा में पार्टी के सचेतक राजेश राम के अलावा उद्योग विभाग और बैंकों के प्रतिनिधि भी कार्यक्रम का हिस्सा बने. इस अवसर पर उद्योग मंत्री ने कहा, मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति/जन जाति उद्यमी योजना के तहत पांच हजार लोगों को उद्यमी बनाने का लक्ष्य है. सरकार मनोबल बढा रही है , लेकिन लाभ लेने वाले पिछड़ रहे हैं. इस योजना के तहत सरकार दस लाख रुपये उद्योग लगाने के लिए देती है. पांच लाख सब्सिडी है और पांच लाख पर चार फीसदी सूद लगता है. महिलाओं को सूद नहीं देना है.
जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं शोध संस्थान में आयोजित इस कार्यक्रम में DICCI के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मश्री रवि कुमार नारा ने कहा, देश में रोजगार के अवसर दिन प्रतिदिन घट रहे हैं. ऐसे में एससी/एसटी समाज के लोगों के सामने उद्यमी बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. हमारी संस्था DICCI सभी सरकारों से एस सी/ एसटी समाज के लोगों को उद्यमी बनाने के लिए सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध कराती है. उन्होंने कहा कि बाबा साहब डा बीआर आंबेडकर आर्थिक क्रांति की भी बात करते थे. आर्थिक तरक्की के बिना कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता है. और इसके लिए उद्यमी होना जरूरी है. फिर भी लोग नहीं मिल रहे हैं. उन्होंने महिला और पुरुष उद्यमियों से इस योजना का लाभ उठाने के लिए आगे आने को कहा.
कांग्रेस विधायक और उद्यमी राजेश राम ने अपना जीवन अनुभव सुनाते हुए कहा, मैंने दूसरे से तीन लाख रुपये लेकर अपना उद्योग शुरू किया था. आज मैं 25 लाख रुपये इनकम टैक्स देता हूं. दलित समाजक्षजब तक उद्योग धंधा से नहीं जुड़ेगा तब तक उसका विकास नहीं होगा. उद्यमी बनने का रास्ता कठिन है. इसमें कड़ी मेहनत और निरंतरता जरूरी है. इसकी जटिलताओं से घबराना नहीं है. आपका समर्पण ही आपको सफलता दिलायेगा.
कार्यक्रम का संचालन कर रहे DICCI के राष्ट्रीय सलाहकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्राध्यापक प्रो राजेश पासवान ने कहा, दलित समाज का बुद्धिजीवी ही दलितों को बिजनेसमैन बनने से रोकता है. वह दलितों को बिजनेस के फायदे नहीं बताता है बल्कि बिजनेस करना चाहने वालों को उसके नुकसान गिनाता रहता है. हमारे समाज को इस प्रवृत्ति का त्याग करना चाहिए. उन्होंने कहा, DICCI दलित समाज के उद्यमियों को उद्योग-धंधा लगाने के लिए सहायता और सहयोग देने को तत्पर है.