Purnia: क्या आप जानते है कि बिहार के कटिहार जिले में एक ऐसा थाना है जिसे पुलिस नहीं दलाल चलाते है

पूर्णियाँ बिहार
  • हमलोगों को थाने से ही ट्रकों को पकड़ने का लाइसेंस मिला हुआ है
  • थानाध्यक्ष ने कहा मुझे जानकारी नहीं
  • पूर्णिया प्रक्षेत्र के आईजी तक पहुंचा मामला, कहा जांच होगी, पढ़ें पूरी खबर

Purnia, Rajesh Kumar Jha : आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि बिहार के कटिहार जिले का एक ऐसा थाना है. जिसे पुलिस नहीं दलाल चलाते है. जी हाँ ये है पूर्णिया मोड़ से दालकोला चेकपोस्ट के बीच कटिहार जिले का बलरामपुर थानाक्षेत्र. जिसे वहाँ के दलालों ने अपने कब्जे में कर रखा है. जो बलरामपुर थाने का भय दिखाकर पूरी रात ट्रकों से वसूलते है रुपये. जिस ट्रक वालों ने रुपया नहीं दिया, उसे जबरदस्ती घेरकर एक धर्मकांटा में खड़ा कर देता है. उसके बाद कटिहार के बलरामपुर थाने का भय दिखाकर 2 से तीन लाख तक वसूली करते है. सबसे बड़ी बात, इन दलालों के दुस्साहस देखिये, जब तक ट्रक मालिक रुपये नही देता, तब तक ट्रक को नहीं छोड़ते है. अगर कोई ट्रक इन दलालों को चकमा देकर निकल भी गए तो ये लोग उस ट्रक को बायसी तक पीछा कर पकड़ते है. इस मामले में जब बलरामपुर थानाध्यक्ष प्रेम कुमार ने कहा कि इस मामले की जानकारी नहीं है. हमलोग जब गश्ती में जाते है तब कोई भी नहीं दिखता है.

दूसरी तरफ मामले की गम्भीरता को देखते हए पूर्णिया प्रक्षेत्र के आईजी सुरेश प्रसाद चौधरी ने कहा कि मामला काफी गम्भीर है. इस मामले की जांच जरूर होगी और जो भी दोषी पाये जाएंगे, उन पर कारवाई होगी. बताते चलें कि दालकोला के पूर्णिया मोड़ से लेकर दालकोला चेकपोस्ट के बीच कटिहार जिले के बलरामपुर थाने का आउटपोस्ट थाना है. जहां कुछ लोकल दलालों ने अपना कब्जा जमा रखा है. ये दलाल रात के 10 बजे से सुबह के चार बजे तक पूरी रात सक्रिय रहते है. हर दिन उस रूट से तक़रीबन 10 से 15 कालाबाजारी के खाद का ट्रक गुजरता है.

जिससे वो दलाल प्रति ट्रक 5000 रुपये वसूलते है और एक रात में 50 हजार से एक लाख रुपया वसूलते है. सबसे बड़ी बात इनकी नजर पुलिस से भी ज्यादा तेज रहती है. इनकी नजर से कोई भी ट्रक बच नहीं सकता है. अगर कोई भागना भी चाहे तो ये दलाल काले रंग की स्कॉर्पियो से खदेड़ कर पकड़ लेते है. ये दलाल एक पुलिस की तरह काम करते है और उसे अंजाम देते है. इन दलालों का कहना है कि मुझे बलरामपुर थाना से ट्रकों को पकड़ने का लाइसेंस मिला हुआ है. सबसे बड़ी बात बिना थानाध्यक्ष की सहमति के वगैर ये थानाध्यक्ष का नाम कैसे बेच रहे है.