बिहार का बजट बेहद निराशाजनक, संघर्षरत तबकों की मांगों पर बजट में कुछ भी नहीं!

पूर्णियाँ

स्टेट डेस्क/पटना: भाकपा (माले) के राज्य सचिव कुणाल ने बिहार सरकार द्वारा पेश 2025-26 के बजट को बेहद निराशाजनक और दिशाहीन करार दिया। उन्होंने कहा कि यह बजट पूरी तरह से जनविरोधी है और संघर्षरत तबकों की मांगों को अनसुना करता है।

आशा, जीविका, रसोइया, आंगनवाड़ी, माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से जुड़ी महिलाओं की कर्ज माफी, आउटसोर्सिंग पर काम कर रहे सफाईकर्मी, कार्यपालक सहायक और अन्य स्कीम वर्करों सहित ठेका पर काम कर रहे लाखों लोगों की लोकप्रिय मांगों को बजट में कोई जगह नहीं मिली है।

बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और सरकारी अस्पतालों में दवाओं तथा डॉक्टरों की कमी जैसी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को 2500 रुपए देने का वादा किया था, लेकिन इसे लागू करने का कोई इरादा बजट में दिखाई नहीं देता।

आज बिहार की 65 प्रतिशत महिलाएं अनीमिया की शिकार हैं, लेकिन उनके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है। महिलाओं की सुरक्षा और रोजगार के लिए भी बजट में कोई ठोस योजना नहीं है।

स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और सुधार के लिए किए गए आवंटन बढ़ते खर्चों के मुकाबले बेहद कम हैं।

बिहार में साक्षरता दर पहले से ही निम्न स्तर पर है और सरकारी स्कूलों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

भाकपा (माले) की लंबे समय से यह मांग रही है कि प्रत्येक प्रखंड में एक डिग्री कॉलेज खोला जाए.

शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमितता का अभाव गंभीर समस्या बनी हुई है। लाखों शिक्षकों की भर्ती अधर में है और बजट में इसे लेकर कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है।

सरकारी विद्यालयों में शौचालय, पेयजल, और स्मार्ट कक्षाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की गई है।

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, लेकिन बजट में किसानों और बटाईदारों की समस्याओं का कोई ठोस समाधान नहीं दिखता।

सरकार बटाईदार किसानों को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं है। भूमि सुधार और बटाईदारों को पहचान देने के मुद्दे पर बजट मौन है।

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज माफी की मांग और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी को लेकर भी बजट में कोई प्रावधान नहीं है।

मखाना बोर्ड की स्थापना का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार 20 वर्षों में हजारों छोटे-बड़े उद्योगों को बचाने में विफल रही है। कोई नया उद्योग लगाने का संकल्प भी इस बजट में नहीं दिखता।

बिहार में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है, लेकिन बजट में रोजगार सृजन के लिए किसी ठोस नीति का अभाव है।

शिक्षकों, स्वास्थ्यकर्मियों और अन्य सरकारी विभागों में लाखों रिक्तियां खाली पड़ी हैं, लेकिन उन्हें भरने के लिए कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है।

भाकपा (माले) की मांग थी कि हर घर को 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाए, लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया।

बजट में दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है, जो सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

गरीबों को जमीन का पट्टा देने और भूमि सुधार लागू करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और छात्रावास सुविधाओं के लिए बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है।

94 लाख महागरीब परिवारों को 2 लाख रुपए देने और 31 मार्च तक पोर्टल जारी रखने की मांग को भी सरकार ने ठुकरा दिया है।

इस अन्यायपूर्ण बजट के खिलाफ सड़कों पर उतरें और अपने अधिकारों की लड़ाई मजबूती से लड़ें।