पूर्णिया:-19 अगस्त(राजेश कुमार झा) जब किसी को सरकार या उसके तंत्र से न्याय नहीं मिलता है तब लोग मीडिया का दरवाजा खटखटाते है.लेकिन जब किसी मीडियाकर्मी के साथ अन्याय होता है या उसकी हत्या होती है,तब सारे तंत्र मौन हो जाते है. कहीं से कोई भी मीडिया के पक्ष में एक आवाज भी नहीं उठाता है.कोई भी एक कदम मदद के लिये भी नहीं बढ़ाता है.आखिर क्यों.कहाँ गया पत्रकार सुरक्षा कानून.
बताते चलें कि आज देश के हर जिलों में बस मुट्ठी भर पत्रकार है जो पूरे जिले में हो रहे न्याय एवं अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते है.पत्रकार सबों के लिये हमेशा खड़े रहते है.चाहे धूप हो बरसात हो या फिर ठंड हो.हमेशा अपने कर्तव्य के प्रति ततपर रहते है.भीषण गर्मी या भीषण ठंड में भी आवाम के साथ खड़े रहते है.लोग घरों में चैन की नींद ले रहे होते है,लेकिन पत्रकार अपने कर्तव्य के लिये खड़े रहते है.
लेकिन उन्हें मिलता है तो अपराधियों की गोली.इन्हीं का नतीजा है अररिया के पत्रकार विमल यादव.जिन्हें अपराधियों ने घरों में घुसकर गोली मार दी. लेकिन सरकार चार लाइन की एक शोक संवेदना देकर मौन हो गई.सरकार या उसके तंत्र ने इतनी सी भी मानवता नहीं दिखाई की दिवंगत पत्रकार के घर पर जाकर थोड़ी सी सहानुभूति दिखाती.
आज पूर्णिया में द प्रेस क्लब ऑफ पूर्णिया एवं पूर्णिया प्रेस क्लब के बैनर तले एकजुट होकर दिवंगत पत्रकार विमल यादव के साथ हुए अन्याय के खिलाफ कैंडलमार्च निकाल कर सरकार और उसके तंत्र के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. आखिर कब रुकेगी पत्रकार के साथ हो रहा अन्याय.