पूर्णिया : मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर दिया गया प्रशि़क्षण

पूर्णियाँ बिहार

पूर्णिया/राजेश कुमार झा। आज दिनांक 27 मार्च, 2022 को मखाना विकास योजना अंतर्गत एक दिवसीय मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशि़क्षण सह मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रक्षेत्र का भ्रमण कार्यक्रम का आयोजन भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णिया में किया गया। एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पारस नाथ ने की। प्राचार्यं, किसानों एवं वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया।

मखाना विकास योजना के नोडल पदाधिकारी डॉ. पारस नाथ ने अपने उदबोधन में कहा कि मखाना फसल एवं मखाना कृषकों के विकास के लिए बिहार सरकार नई मखाना विकास योजना को दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किषनगंज एवं प. चम्पारण के बेकार पड़े जलजमाव क्षेत्रों को विकसित किया जा रहा है। लगभग 1500 से अधिक मखाना उत्पादक किसानों को प्रथम एवं दूसरे चरण में प्रषिक्षित किया गया। सबौर मखाना-1 के किसानों के खेत/तालाब में प्रत्यक्षण किया जा रहा है।

मखाना उत्पादन तकनीक की सभी गतिविधियों का चेक लिस्ट बनाकर समय-समय पर औचक गहन नीरिक्षण किया जा रहा है, ताकि इस परियोजना को शतप्रतिषत धरातल पर उतारा जा सके। यह परियोजना बिहार सरकार की मेगा एवं मत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना की सफलता से उत्तरी बिहार के बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो रहा है। कोसी नदी का जल बिहार के लिए अभिषाप नहीं वरदान साबित होगा। विगत वर्षों में मखाना विकास योजना की उपलब्धियों से उत्साहित मखाना उत्पादकों देखकर बिहार सरकार ने सम्पूर्ण बिहार के चौर-जलजमाव क्षेत्रों के सर्वांगिण विकस हेतु मखाना आधारित तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए मखाना विकास योजना का विस्तार किया है।

इस योजना की सफलता की बहुत बड़ी जिम्मेदारी भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ को दी गई है। कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्-मखाना अनुसंधान केन्द्र, दरभंगा, कृषि विज्ञान केन्द्र, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा एवं किषनगंज के कुल 32 कृषि वैज्ञानिकों की टीम विगत कई वर्षों से मखाना विकास योजना की सफलता के लिए लगातार कार्यरत है। सह अधिष्ठाता-सह-प्राचार्य डॉ0 पारस नाथ ने मखाना फसल में कीट प्रबंधन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए समन्वित कीट प्रबंधन तकनीक अपनाने की आवश्यकता है।

मखाना पौध की रोपाई से पूर्व इमिडाक्लोरपिड 70 अथवा थायोमेथोक्सैम 70.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर उसके जड़ को आधा घंटा तक उस घोल मे डुबोकर शोधित करना चाहिए तथा मखाना पौध की रोपाई के 40 दिनों बाद 5 प्रतिशत नीम तेल का घोल 25 दिनों के अन्तराल पड़ छिड़काव करना चाहिए। तालाब पद्धति-मखाना पौध की रोपाई के 40 दिनों बाद 5 प्रतिषत नीम तेल का घोल 25 दिनों के अन्तराल पड़ छिड़काव करना चाहिए।

कार्यक्रम के समन्वयक मखाना वैज्ञानिक तथा प्रधान अन्वेषक मखाना डॉ. अनिल कुमार ने विगत वर्षों में कृषि महाविद्यालय, पूर्णियाँ में माखाना अनुसंधान परियोजना की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए बिहार सरकार के उद्यान निदेषालय एवं बिहार बागवानी विकास सोसाईटी के द्वारा वित्तपोषित नई मखाना विकास योजना के संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी दी।

डा. कुमार ने कहा कि मखाना उत्पादकों को अपने उत्पाद की ब्रांडिंग करनी होगी, तभी बाजार में किसानों द्वारा उत्पादित किये गये मखाना लावा (उत्पाद) का उचित मूल्य मिल सकेगा और उन की आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति के साथ-साथ गरीबी दूर होगी। प्रशि़क्षण कार्यक्रम के सह समन्वयक डॉ. पंकज कुमार यादव ने मखाना पौधशाला से मुख्य खेत में मखाना के पौधों की रोपाई की वैज्ञानि विधी को विस्तार पूर्वक बताया। डॉ. पंकज कुमार यादवने पोषक तत्व प्रबधन से पूर्व यह बताया कि किसी भी पौधे के सम्पूर्ण विकास हेतु कुल सत्रह पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिन्हें आवश्यक पोषक तत्वों की श्रेणी में रखा गया हैै।

खेत पद्धति से मखाना की खेती में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की वैज्ञानिक विधि को विस्तार पूर्वक बताया कि नेत्रजन-75ः स्फुर-45ः पोटाश- 30 एवं चूना- 40-50 किग्रा. प्रति है. उपयोग करना चाहिए। रासायनिक उर्वरक के प्रयोग नेत्रजन की आधी मात्रा एव स्फुर, पोटाश एवं चूने की पूरी मात्रा खेत की आखिरी जुताई के समय, रोपाई से लगभग 5 दिनों पूर्व करें। नेत्रजन की आधी शेष मात्रा को चार से पॉंच बराबर भागों में बांटकर घोल बनाकर मखाना की पत्तियों पर दस से पन्द्रह दिनों के अंतराल पर रोपाई के 20-25 दिनों बाद छिड़काव शुरू करें। डॉ. तपन गराई द्वारा सुक्ष्म पोषक तत्वो के संतुलित प्रयोग के बारे में जानकारी दी गयी।

डॉ. रूबी साहा द्वारा मखाना की फसल मे नीली हरी शैवाल के नियंत्रण की जानकारी दी गयी। डॉ. जीएल चौधरी द्वारा मखाना के फसल मे खरपतवार के प्रबंधन पर जानकारी प्रदान कि। प्रायोगिक कार्य हेतु मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रक्षेत्र का भ्रमण क्रमशः डॉ. पंकज कुमार यादव, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. जीएल चौधरी, डॉ. तपन गोराई, डॉ. रूबी साहा एवं डॉ. विकास कुमार द्वारा कराया गया।

मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशि़क्षण सह मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रक्षेत्र का भ्रमण कार्यक्रम में किषनगंज जिले के सहायक तकनीकी प्रबंधक डमरूधर सरस्वती एवं वेदिका कुमारी के साथ कुल 35 मखाना उत्पादक किसानों ने प्रषिक्षण हेतु अपना पंजीकरण कराया जिसमें प्रमुख रूप से क्रमषः असरूल हक, फारूक आलम, जुही, जुनेद, अकमल, विकम, रफी, मोसीन, जहॉगीर, रवीना अंसारी महोमद सनी एवं अकबर आलम आदि ने मखाना उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशि़क्षण सह मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रक्षेत्र का भ्रमण कार्यक्रम में उत्साह पूर्वक भाग लिया।

इस अवसर पर महाविद्यालय के अन्य वैज्ञानिक डॉ. पंकज कुमार यादव, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. तपन गोराई, डॉ. जीएल चौधरी, डॉ. रूबी साहा, डॉ. विकास कुमार एवं कर्मचारियों में श्रवण कुमार ने अपना सहयोग प्रदान किया किया। मखाना विकास योजना अंतर्गत एक दिवसीय कार्यशाला का संचालन डॉ. अनिल कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पंकज कुमार यादव द्वारा किया गया।

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