शिवहर/रविशंकर सिंह। धोती कुर्ता और कुर्ता पैजामा भारतीय परिधान है व हमारी संस्कृति और पहचान है । किंतु इस परिधान को शिक्षक को पहने हुए देखकर लखीसराय जिलाधिकारी का शिक्षक पर भड़कना व शिक्षक के साथ दुर्व्यवहार करना तथा शिक्षक पर कानूनी कार्रवाई करना , उक्त पदाधिकारी के नकारात्मक कार्यशैली एवं उनके निम्न मानसिकता को उजागर करता है। उक्त बातें शिक्षक न्याय मोर्चा के प्रदेश महासचिव अभय कुमार सिंह ने बयान जारी कर बताया।
उन्होंने कहा कि अभी तक बिहार में शिक्षकों के लिए कोई भी ड्रेस कोड राज्य सरकार द्वारा निर्धारित नहीं किया गया है , फिर भी सूबे के कतिपय पदाधिकारियों के द्वारा जानबूझकर शिक्षकों ड्रेस को लेकर प्रताड़ित किया जाता रहा है , जो दुर्भाग्यपूर्ण मामला है। उन्होनें कहा कि ऐसे अंग्रेजियत से लैस प्रवृति वाले पदाधिकारियों को भारतीय इतिहास और संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए तथा पहले अपने ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए, फिर शिक्षकों को नसीहत देना चाहिए।
उन्होनें लखीसराय डीएम के कार्यशैली की तीव्र आलोचना करते कहा कि निरीक्षण के क्रम में जहां पदाधिकारियों को विधालय के पठन-पाठन में गुणात्मक सुधार हेतू आवश्यक पहल, सहयोग व समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए, वहीं निरीक्षण के नाम पर शिक्षकों को प्रताड़ित करना और उनका शोषण करना अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
श्री सिंह ने अफसोस जताते कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आजादी सात दशक बीत जाने के बावजूद भी हमारी शिक्षा व्यवस्था आज भी मैकाले की शिक्षा नीति को ढो रहा है, जबकि स्वामी विवेकानंद, आचार्य चाणक्य आदि जैसे सरीखे विद्वानों का शिक्षा दर्शन हमारे पास उपलब्ध है , किन्तु आज तक हमारे नीति नियंताओं ने अपने देश के विद्वानों के शिक्षा दर्शन को भारतीय शिक्षा व्यवस्था में शामिल करना मुनासिब नही समझा है, यह आश्चर्यजनक है।
वस्तुतः मैकाले का यह कथन सत्य प्रतीत होता है , जैसा कि मैकाले ने अपने पिता को लिखा था कि मैंने भारत में ऐसी शिक्षा की व्यवस्था कर दी है कि भले ही भारत के लोग शक्ल से भारतीय नजर आयेंगे, लेकिन व्यवहार में अंग्रेज होगें और अंग्रेजियत कार्यशैली उनकी पहचान होगी। उन्होनें कहा कि ऐसे अंग्रेजियत से लैस होनेवाले पदाधिकारियों पर राज्य सरकार को कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि भारतीय संविधान ने अफसरों को अपने कनीय कर्मियों गाली देने और प्रताड़ित करने का अधिकार नही दिया है ।
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