स्टेट डेस्क/ पटना। जाति जनगणना पर जारी बहस और इस मुद्दे पर भाजपा को दोष देने वाले कुछ क्षेत्रीय दलों पर भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री सह बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉ० निखिल आनंद का विस्तृत बयान सामने आया है। उन्होंने कहा “जातिवाद और वंशवादी सामाजिक न्याय नेताओं के दिन खत्म होने जा रहे हैं और नरेंद्र मोदी सामाजिक न्याय के नए मसीहा हैं। भारत सरकार को यूपीए द्वारा 2011 की जाति जनगणना में 5500 करोड़ रुपये धोखाधड़ी की जांच करनी चाहिए।”
“भाजपा जनसंघ के शुरुआती दिनों से ही सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी पैरोकार रही है। क्या कुछ क्षेत्रीय दल सोचते हैं, जाति जनगणना भारतीय समाज की सभी बुराइयों के लिए रामबाण है? यह कुछ क्षेत्रीय दलों की राजनीति के लिए भानुमती का पिटारा भर है लेकिन भाजपा सामाजिक न्याय के प्रति अपने दृष्टिकोण में अन्य दलों की तुलना में बहुत ही व्यावहारिक है। हम जाति जनगणना के सीधे तौर पर या सख्ती से विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन समय सीमा, जटिलताएं और तैयारी भी महत्वपूर्ण हैं। जाति जनगणना की मांग करने वाले सभी दलों को पहले कांग्रेस से पूछना चाहिए कि उन्होंने आजादी के बाद से ओबीसी समाज के साथ विश्वासघात क्यों किया है और 2011 की जाति जनगणना के अवसर को बर्बाद कर घोटाला क्यों किया?
2010 में 2011 की जनगणना में जाति गणना कराने को लेकर संसद में विस्तृत बहस हुई थी। भाजपा को दोष देने वालों को संसद के रिकॉर्ड के निकालकर सुनना चाहिए कि हमारे नेता अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, गोपीनाथ मुंडे सहित अन्य लोगों ने उस समय इस मुद्दे पर क्या कहा था। उक्त बहस के बाद, यूपीए सरकार जाति जनगणना कराने के लिए सहमत हो गई। आमतौर पर जनगणना अधिनियम के तहत जनगणना की जाती है। हैरानी की बात यह है कि यूपीए सरकार ने नियमित जनगणना के साथ इसे कराने की बजाय जनगणना अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अपनी पसंद की निजी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों को शामिल करते हुए एक अलग जाति जनगणना की। इस पूरी प्रक्रिया में 5,500 करोड़ रूपये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद किया। यही कारण है कि 10 करोड़ से अधिक डेटा विसंगतियां हैं और लाखों जातियाँ इसमें बता दी गई। कांग्रेस ने इस 2011 की जाति जनगणना में धोखाधड़ी करके भारत के ओबीसी समाज को धोखा दिया है, जिसकी केंद्र सरकार द्वारा जांच होनी चाहिए और दोषियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
एनसीबीसी को संवैधानिक दर्जा देना, 27 ओबीसी मंत्रियों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करना, नीट में ओबीसी और ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देना, केवीएस, एनवीएस, सैनिक स्कूलों में ओबीसी आरक्षण देना। ये सभी हैं पीएम नरेंद्र मोदी के ओबीसी समर्थक कुछ फैसले जो मंडल आयोग लागू होने के बाद से सामाजिक न्याय को लेकर लिए जाने वाले आजाद भारत के सबसे साहसिक और ऐतिहासिक फैसले हैं। पिछले दिनों के केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार ने उन समुदायों को एक बड़ा संदेश दिया है, जो नीति-निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रिया से आज तक छूटे हुए थे।
नरेंद्र मोदी जी ने ओबीसी- सबाल्टर्न नेताओं को अपने नेतृत्व की साख साबित करने और मोदी जी के दृष्टिकोण को जन- जन में साकार करने के लिए शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था में शामिल होने का पहली बार इतना बड़ा अवसर दिया है। पीएम मोदी द्वारा शुरू किए गए सामाजिक न्याय के एक नए युग के साथ जातिवाद और वंशवादी सामाजिक न्याय नेताओं के दिन अब खत्म होने जा रहे हैं। भारत को भविष्य की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए इस मोदी सरकार में मात्रात्मक योग्यता के साथ-साथ गुणात्मक योग्यता भी है। अब देश के जातिवादी और वंशवादी राजनीतिक दलों को जान लेना चाहिए कि उनके दिन लदने जा रहे है और नरेंद्र मोदी जी भारत में सामाजिक न्याय के नए मसीहा हैं।”
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