मुजफ्फरपुर, बिफोर प्रिंट। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक संकल्प और साधना के प्रतिमान हैं तो वीरता और साहस के पर्याय चंद्रशेखर आजाद हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दोनों ही अग्रणी योद्धा थे। दोनों में शौर्य पराक्रम, ओज और निडरता का अद्भुत समावेश है। अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में जिस तरह से दोनों ने अपना स्वर बुलंद किया वह आज भी प्रेरणा का आलोक स्तंभ है। ये बातें आमगोला के शुभानंदी परिसर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित तिलक और आजाद की जन्म जयंती पर बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संजय पंकज ने कही। डॉ. पंकज ने विस्तार से बोलते हुए कहा कि तिलक राष्ट्रवादी शिक्षक, राजनेता और आध्यात्मिक चिंतक थे। जेल में रहते हुए गीता रहस्य जैसी पुस्तक का सृजन करके उन्होंने पूरे देश में स्वतंत्रता का प्रबल भाव जगाया।
मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस के द्वारा किए गए बम धमाके को तिलक ने जायज ठहराते हुए मराठा और केसरी में उसके पक्ष में संपादकीय लिखा था। भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के शिखर पुरुष तिलक थे तो युवा निर्भीकता के अटल पर्वत आजाद थे। तिलक और आजाद भारत को जीवंत सत्ता मानते हुए अपनी आत्मा में बसाए रखते थे। साहित्यकार उदय नारायण सिंह ने कहा कि तिलक की आध्यात्मिक चेतना में गीता का कर्मयोग समाविष्ट था। वे हिंदी के हिमायती और भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि के पक्षधर थे। संस्कृतिधर्मी कुमार विभूति ने कहा कि भारतीय निष्ठा के समर्पित व्यक्तित्व तिलक और अंग्रेजी हुकूमत के कट्टर शत्रु आजाद थे।
डॉ. केशव किशोर कनक ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जो बलिदान दिया है उसका हम मोल चुका नहीं सकते हैं। तिलक ने जन जागृति के लिए गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव का शुभारंभ किया। आजाद ने मरना स्वीकार किया लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया। कुमार राहुल ने कहा कि स्वाधीनता की आग तिलक और आजाद में लगातार जल रही थी इसीलिए उन्होंने अपनी जिंदगी की परवाह नहीं की। आयोजन में ब्रज भूषण शर्मा, डॉ. वीरेंद्र कुमार मल्लिक, अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा, प्रमोद आजाद, प्रेमभूषण, चैतन्य चेतन, कृशानु, शांतनु ने भी अपने भावोद्गार प्रकट किए।
विचार सत्र के बाद काव्यपाठ में सुमधुर स्वर में जब कुमार राहुल ने यह गीत-दर्पण नहीं बदलता है बस रूप बदलते हैं, कौन किसी को छलता है हम खुद को छलते हैं, तो उपस्थित श्रोताओं ने करतल ध्वनियों से सराहना की। डॉ. प्रेम कुमार मल्लिक ने दोस्ती कविता का पाठ करते हुए सुनाया-प्रेम और समर्पण के, धागे से बंधी होती है दोस्ती। संजय पंकज ने राष्ट्रीयता से भरी कविता-आओ अपना देश संवारें, तन मन धन सब वारें इस पर, इसका जर्जर भेस संवारें-सुनाकर देशप्रेम का इजहार किया और आजादी के अमृत महोत्सव को अपना प्रणाम अर्पित किया। संचालन चैतन्य चेतन तथा धन्यवाद ज्ञापन कुमार कृशानु ने किया।