सेंट्रलडेस्क। 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। पूरे देश का मनोबल गिरा हुआ था। ऐसे में सबकी निगाहें फ़िल्म जगत और कवियों की तरफ़ जम गईं कि वे कैसे सबके उत्साह को बढ़ाने का काम कर सकते हैं।
सरकार की तरफ़ से फ़िल्म जगत को कहा जाने लगा कि भई अब आप लोग ही कुछ करिए। कुछ ऐसी रचना करिए कि पूरे देश में एक बार फिर से जोश आ जाए और चीन से मिली हार के ग़म पर मरहम लगाया जा सके। मुझे पता था कि ये काम फ़ोकट का है। इसमें पैसा तो मिलना नहीं। तो मैं बचता रहा। लेकिन आख़िर कब तक बचता।
मैं लोगों की निगाह में आ गया। चूंकि मैंने पहले भी देशभक्ति के गाने लिखे थे इसलिए मुझसे कहा गया कि ऐसा ही एक गीत लिखा जाए। उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर। उसी दौरान नौशाद भाई ने तो मोहम्मद रफ़ी से ‘अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं’, गीत गवा लिया, जो बाद में फ़िल्म ‘लीडर’ में इस्तेमाल हुआ।
राज साहब ने मुकेश से ‘जिस देश में गंगा बहती है’ गीत गवा लिया। तो इस तरह से रफ़ी और मुकेश तो पहले ही रिज़र्व हो गए। अब बचीं लता बाई। उनकी मखमली आवाज़ में कोई जोशीला गाना फ़िट नहीं बैठता। ये बात मैं जानता था। तो मैंने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची। इस तरह से ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का जन्म हुआ।
जिसे लता ने पंडित जी के सामने गाया और उनकी आंखों से भी आंसू छलक आए। 1954 में आई फ़िल्म ‘जागृति’ में कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल’ भी बड़ा मशहूर हुआ था। ये गाना महात्मा गांधी को समर्पित था।
कवि प्रदीप ने बीबीसी को बताया, “ये गाना तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बड़ा पसंद आया था। उन्होंने मुझसे ये गाना कई बार सुना।” कवि प्रदीप ने बताया कि वो शिक्षक थे और कविताएं भी लिखा करते थे। एक बार किसी काम के सिलसिले में उनका मुंबई जाना हुआ और वहां उन्होंने एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया।
वहां एक शख़्स आया था जो उस वक़्त बॉम्बे टॉकीज़ में काम करता था. उसे उनकी कविता बहुत पसंद आई और उसने ये बात बॉम्बे टॉकीज़ के मालिक हिमांशु राय को सुनाई। उन्होंने फ़ौरन कवि प्रदीप को बुलवाया और कुछ सुनाने को कहा। प्रदीप ने कहा, “हिमांशु राय जी को मेरी रचनाएं बहुत पसंद आईं और उन्होंने मुझे फ़ौरन 200 रुपए प्रति माह पर रख लिया जो उस वक़्त एक बड़ी रकम हुआ करती थी।” इस इंटरव्यू में कवि प्रदीप ने बताया था कि वो 90 के दशक के संगीत से बिल्कुल ख़ुश नहीं थे और इस वजह से उन्होंने गाने लिखने बंद कर दिए थे। साल 1998 में कवि प्रदीप का निधन हो गया था।