सेंट्रल डेस्क। पहली अप्रैल से हर तरह के वर्चुअल डिजिटल एसेट्स यानी क्रिप्टो परिसंपत्तियों से होने वाले लाभ पर 30 प्रतिशत टैक्स का प्राविधान लागू हो रहा है। इन एक्सचेंजों का दावा है कि निवेशक भारतीय प्लेटफार्म को छोड़कर अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म के जरिये निवेश करने लगेंगे।
दूसरी तरफ, संसद में इस पर और ज्यादा टैक्स लगाने की मांग जोर पकडऩे लगी है। माना जा रहा है कि सरकार इसे एक परीक्षण के रूप में देख रही है और आने वाले कुछ समय में इसे लेकर कोई एक दिशा तय होगी।
लोकसभा में वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया था कि इस टैक्स का उद्देश्य क्रिप्टो संपत्तियों पर निगरानी करना है। बजट पर चर्चा के दौरान कुछ सांसदों ने और ज्यादा टैक्स लगाने की बात कही थी और अमेरिका समेत कुछ देशों का उदाहरण पेश किया था।
अगर आंकड़े भी देखे जाएं तो 30 प्रतिशत टैक्स घोषणा के बाद कुछ दिनों तक तो निवेशकों में सुस्ती थी, लेकिन फिर से निवेश बढऩे लगा। वर्तमान में करीब दो करोड़ निवेशक क्रिप्टो संपत्तियों में निवेश कर चुके हैं।
भारत का सबसे बड़ा और सबसे सुरक्षित क्रिप्टो एक्सचेंज होने का दावा करने वाले क्वाइनडीसीएक्स के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मनहर गैरग्रेट का कहना है कि बजट में टैक्स लगाने के प्रस्ताव के बाद से ही निवेशक भारतीय एक्सचेंज को छोड़कर अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज का रुख कर रहे हैं।
हालांकि वहां कोई नियमन नहीं होने से निवेशकों के समक्ष दूसरे खतरे हैं। उनका कहना है कि भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंज ग्राहकों के केवाइसी दस्तावेज सरकार से साझा कर रहे हैं। लेकिन टैक्स की नई व्यवस्था से एक्सचेंज के लिए भी कारोबार में टिक पाना संभव नहीं है। हर सौदे पर एक प्रतिशत टैक्स काफी भारी पड़ेगा, क्योंकि क्रिप्टो कारोबारी कई बार सौदा करते हैं।
उल्लेखनीय है कि आरबीआइ भी क्रिप्टो कारोबार को लेकर कई बार ङ्क्षचता जता चुका है। इसका कोई नियमन नहीं होने के कारण ठोस तथ्यों के मुकाबले अभी बाजार में आशंकाएं अधिक हैं। सीतारमण कह चुकी हैं कि इस पर अलग से विचार होगा कि इस व्यापार को नियमन दायरे में लाना है या बंद करना है।