17 साल के संघर्ष के बाद इन कर्मचारियों को टाटा मोटर्स के खिलाफ मिली जीत

दिल्ली

सेंट्रल डेस्क/ बीपी टीम : पिछले दिनों औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट ने टाटा मोटर्स के खिलाफ एक आदेश पारित किया। इस दौरान कंपनी प्रबंधन को अनुचित श्रम प्रथाओं के लिए उत्तरदायी ठहराया गया और 17 साल से 52 कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका का निष्पादन हुआ। टाटा मोटर्स ने स्थायी कर्मचारी व विशेषाधिकार से वंचित रखा गया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति रवींद्र घुरो ने मामले में सुनवाई करते हुए श्रम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को रद किया साथ ही कंपनी प्रबंधन को आदेश दिया कि वे कर्मचारियों मुआवजा दें। टाटा मोटर्स में कार्यरत कर्मचारियों ने 17 साल पहले एक याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कंपनी प्रबंधन पर आरोप लगाया था कि प्रबंधन कर्मचारियों को लगातार 240 दिन काम करने नहीं देती। इससे पहले ही उन्हें काम नहीं होने का हवाला देकर बैठा दिया जाता है जो श्रम अधिनियम की धारा 2 (ओओ) (बीबी) के तहत छंटनी का अपवाद है।

कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि इसके लिए कंपनी प्रबंधन के पास एक निगरानी विभाग है जो कर्मचारियों के कार्य दिवस की लगातार गणना करती रहती है और जिन अस्थायी कर्मचारियों का कार्य दिवस 240 दिन पूरा होने से पहले उन्हें काम से बैठा दिया जाता था जिससे श्रम कानून के तहत ऐसे कर्मचारियों को स्थायी न करना पड़े। कर्मचारियों की ओर से 2005 में इसके खिलाफ 1500 कर्मचारियों ने श्रम न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन 52 कर्मचारियों ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस मामले में कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय सिंघवी व राहुल कामेरकर ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। जिसमें उन्होंने बताया कि सभी अस्थायी कर्मचारी ऑटो मैकेनिक, कोर फिनिशर, पेंटर सहित मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के कुशल कर्मचारी है लेकिन कंपनी इन कर्मचारियों को एक साल में केवल सात माह के लिए ही नियोजित करती है। अवधि समाप्ति से पहले ही इन्हें एक तिहाई वेतन देकर काम से यह कहते हुए बैठा दिया जाता है कि कंपनी के पास आर्डर कम है।

वही 240 की अवधि पूरी नहीं करने वाले कर्मचारियों से प्रबंधन काम लेती थी। कुछ कर्मचारियों ने कोर्ट को बताया कि उन्हें 238 दिन कार्यदिवस पूरा होने के बाद बैठा दिया गया। तकनीकी रूप से 240 दिन कार्यदिवस नहीं होने पर कर्मचारी भी स्थायी रूप से कंपनी को नियोजित करने का दबाव नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रबंधन इस तरह का काम करती थी। टाटा मोटर्स प्रबंधन द्वारा की जा रही और इस तरह के खेल का कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने बाल बापूजी शेल्के जैसे कर्मचारी का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रबंधन द्वारा इस तरह की कार्रवाई हास्यपद बताया। 232 दिन और कुछ को 238 दिन काम लेकर अस्थायी रूप से हटा दिया गया जबकि कर्मचारी 240 दिन से अधिक काम करने में सक्षम थे। यह इस बात का सबूत है कि प्रबंधन कानून की आंखों पर धूल झोकने का काम कर रही है। कंपनी प्रबंधन की निगरानी विभाग किसी भी अस्थायी कर्मचारी को 240 दिन काम पूरा होने से पहले ही बैठा देती है।

हाईकोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान श्रम न्यायालय पर भी मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य का ठीक से विशलेषण हीं करने और प्रबंधन द्वारा दिए गए तर्क को स्वीकार कर लिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रम न्यायालय ने मौजूद तथ्यों पर विचार नहीं किए। उच्च न्यायालय ने पाया कि श्रम न्यायालय के निर्णय बिल्कुल अकारण व विकृत है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि टाटा मोटर्स प्रबंधन ने पूरे वर्ष 12 डिवीजनों में अस्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति की। लेकिन चतुराई के साथ से अस्थायी कर्मचारियों के भर्ती की तारीख को अलग-अलग रखा। ताकि एक साथ कर्मचारियों को काम से बैठाने पर इसका खुलासा न हो। कंपनी के अधिकारी के साक्ष्य के आधार पर अदालत ने नोट किया कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अस्थायी कर्मचारी की संख्या लगभग दो तिहाई है।

आपको बता दें कि टाटा मोटर्स के जमशेदपुर प्लांट में भी कई अस्थायी कर्मचारी व बाइ-सिक्स कर्मचारी कार्यरत हैं। जिन्हें 240 दिन से अधिक काम कराने से पहले ही अस्थायी रूप से काम से बैठा दिया जाता है। जबकि ये कर्मचारी भी स्थायी प्रवृत्ति का काम करते हैं।