डेस्क। अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय अपने वाइस चांसलर (उपकुलपति) के खाली पड़े पद को भरने की प्रक्रिया में लगा है। एक्जिक्यूटिव काउंसिल (कार्यकारी परिषद) और कोर्ट मेंबर्स ने तीन सदस्यों में से एक नाम केंद्र सरकार के हवाले फाइनल मुहर के लिए भेज दिया है। दूसरी तरफ, ऑल इंडिया पसमांदा महाज़ के अध्यक्ष शारिक अदीब ने इन सभी प्रक्रियाओं को असत्य, अवैध, असंविधानिक और अहंकारी बता कर सवालिया निशान के घेरे में डाल दिया है। साथ ही साथ पूरे मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप और संशोधन की मांग की है।
ज्ञात हो कि 6 नवंबर को एएमयू कोर्ट ने प्रोफेसर और कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर एमयू रब्बानी, प्रोफेसर फैजान मुस्तफा एवं महिला प्रत्याशी प्रोफेसर नईमा खातून के नामों का पैनल तैयार किया था, जिसे राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के पास एएमयू वीसी के चयन के लिए भेजा जाना है। इससे पहले दो नाम और चयन किए थे और वो भी स्वर्ण जातियां से ही थे।
अतः शारिक अदीब का आरोप है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक ऐसा अड्डा बन गया है जो देश में ऊंच, नीच और जातिवाद को खुलेआम बढ़ावा देकर पसमांदा समाज का बेशर्मी से गला घोंट रहा है। अदीब का तर्क है कि हिन्दुस्तान में लगभग 80 से 85 फीसदी पसमांदा समाज है लेकिन 15 फीसदी तथाकथित उच्च वर्ग अर्थात स्वर्ण वर्ग के मुस्लिम लोगों ने विश्विद्यालय पर अपना मकड़जाल बिछा कर कब्जा कर रखा है।
शारिक अदीब का आरोप है कि यह जो 15 फीसदी मुस्लिम हैं उन्होंने पसमांदा समाज को किसी भी कमेटी का हिस्सा बनने से रोका हुआ है। उनका आरोप है कि यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल और कोर्ट मेंबर्स में मुसलमानों की स्वर्ण जातियां सय्यद, शेख, पठान इतियादी ने डेरा जमाया हुआ है और यह सभी हमेशा अपना मतदान पसमांदा समाज के खिलाफ करते हैं। बल्कि देखा जाए तो इन स्वर्ण मुसलमानों ने पसमांदा समाज के आगे न बढ़ने देने के लिए एक तरह से वीटो लगा रखा है।
अदीब ने अपनी बातों को तथ्यात्मक रूप से रखते हुए संविधान का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को पालन करने की संवैधानिक व्यवस्था की गई है। संविधान में इस बात का उल्लेख है कि राज्य जनता के दबे, कुचले, शोषित एवं कमज़ोर वर्गों के शिक्षा तथा अर्थ संबंधी हितों को विशेष सावधानी से बढ़ावा देगा। इस प्रकार राज्य पिछड़े वर्गों के अर्थ संबंधी तथा शिक्षा संबंधी हितों को बढ़ावा देकर अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करेगा तथा लंबी अवधि में समाज को समतामय बनाने के कर्तव्यों को पूरा करेगा। उन्होंने कहा कि यह काफी निराशाजनक है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संविधान के इस प्रारूप के उलट क्रीमी लेयर को और अधिक मलाई खिलाने में लगा है।
पसमांदा समाज के अध्यक्ष अदीब ने आरोप लगाया कि लंबे समय से एएमयू में ऐसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जिससे ऊंची जाति का ही वीसी चुना जाता है। अदीब का आरोप है कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल एवं एएमयू कोर्ट के ज़रिए एएमयू का वीसी सेलेक्ट करना अप्रासंगिक और अवैध है। वीसी का कार्य सुचारू रूप से विश्वविद्यालय को चलाना होता है तथा शिक्षा की गुणवता को मजबूत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना होता है। एएमयू के वीसी चुनने की प्रक्रिया पूर्णतया राजनीतिक, धार्मिक एवं जातपात पर आधारित है। नरेंद्र मोदी सरकार से अनुरोध है कि इसमें संशोधन करके नई प्रक्रिया लागू करे।