सेंट्रल डेस्क। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने हिजाब के मुद्दे पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के दिए गए फैसले का पुरजोर समर्थन किया है। साथ ही मंच ने कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि चंद अराजक तत्व और छोटी सोच के नेता अपने निजी फायदे के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने से बाज़ आजाएं। एमआरएम ने कहा कि जो लोग भी हिंदुस्तान की फिज़ा में फूट डालो और गंदी राजनीति करो के तर्ज पर ज़हर फैला रहे हैं उनपर कड़ी कार्यवायी होनी चाहिए।
फैसले पर हर्ष जताते हुए मंच के राष्ट्रीय संयोजक माजिद तालिकोटि, शाहिद अख्तर, विराग पचपोर, मोहम्मद अफजाल और गिरीश जुयाल ने एक साथ मिल कर उद्घोष किया… सत्यमेव जयते। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि स्कूल-कॉलेज में छात्र यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं। संयोजकों ने कहा कि बात सिर्फ स्कूल कॉलेज की ही नहीं है… यदि किसी भी छात्रा की भारतीय सेना, वायुसेना या इस प्रकार के किसी भी स्थान पर नौकरी होती है तो ऐसे में हिजाब और नकाब में नौकरी करने की जिद कोई कैसे कर सकता है? उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नियम कानून का पालन करना ही व्यवहारिक और अच्छे नागरिक की पहचान होती है।
मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने कोर्ट की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कांग्रेस और पीएफआई के जो लोग हिजाब का राजनीतिकरण कर रहे थे और लोगों के दिमाग में जहर घोल रहे थे उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले से जवाब दे दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि मानसिक दिवालियापन के शिकार लोग देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सद्भावना और भाईचारे को दीमक लगाना चाहते हैं।
जबकि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड और तथाकथित उलेमाओं और मौलानाओं को यह समझना चाहिए की तुष्टिकरण और भेदभाव का समय अब निकल चुका है। उन्हें समाज में आगे बढ़ कर तालीम, तरक्की और रोजगार पर ध्यान देना चाहिए न कि अशिक्षा, अज्ञानता और अराजकता का रास्ता अपनाना चाहिए। एमआरएम महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय संयोजिका शालिनी अली और बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक बिलाल उर रहमान ने कहा कि इस्लाम में यह कहीं नहीं कहा गया है कि नकाब या हिजाब लगाएं।
दोनों ने यह स्पष्ट किया की हर स्थान का अपना ड्रेस कोड होता है और उसको मानना उस स्थान से जुड़े सभी लोगों का कर्तव्य होता है। इस्लाम यह कहीं नहीं सिखाता है कि आप अपनी मर्जी से किसी भी स्थान या संस्थान का कानून तोड़ें। मदरसा बोर्ड के चेयरमैन बिलाल ने कहा कि बच्चे जब मदरसों में पढ़ते हैं तो कुछ और ड्रेस कोड होता है और जब स्कूलों में तालीम लेते हैं तो वहां का अपना अलग ड्रेस कोड होता है। इस डिसिप्लिन को निभाना चाहिए क्योंकि किसी भी सभ्य समाज और अच्छे नागरिक की यही पहचान होती है।