- मोहर्रम के महीने में शोहदा ए कर्बला की शहादतों को निहायत शिद्दत से याद किया –
मेहसी/हामिद रजा। कत्ले हुसैन अस्ल में मर्ग ए यजीद है। इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद। इस्लामी कलेंडर के पहला महीने का दस तारीख यानि योमे आशूरा के मौके पर आज प्रखंड क्षेत्र में ताज़िया जुलूस निकाल कर कर्बला तक पहुंचकर इमाम हुसैन के शहादत को याद किया गया। मोहर्रम के महीने में शोहदा ए कर्बला की शहादतों को निहायत शिद्दत से याद किया जाता है। और उनकी शान में मनकबत पढ़ी जाती है। उनकी अजमत और शान व शौकत का बयान किया जाता है। इमाम ए हुसैन सन 61 हिजरी में अपने 72 साथियों, अहले बैत के साथ कर्बला के मैदान में जो कुर्बानी पेश किया उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है।
मानवता की हिफाजत आप ने अपने लहू से की । इंसानियत को गुलामी की जंजीर से आजादी दिलाई। हक़ और सत्य बोलने पर लगाई जा रही पाबंदियों के खिलाफ आवाज उठाई। इंसानियत के दुश्मन अहलेबैत की शान को न समझ सके और उन पर पानी भी बंद कर दिया। लेकिन आप ने पाने की चिंता ना करते हुए अपने कीमती लहू से सब्र व तहम्मुल की ऐसी दास्तान लिखी जिसको पढ़ने या सुनने के बाद आज भी कलेजा फट जाता है।
आंखें अश्कबार हो जाती हैं। यजिदीयो ने जुल्म की इंतेहा कर दी। इमाम कि 6 महीने के दूध पीते नन्हे अली असगर को पानी के बदले तीर दिया। जिस ने मानवता के इतिहास की बुनियाद को हिला डाला। लेकिन अली असगर की प्यास और शहादत ने मानवता, त्याग, बलीदान के जज्बा को नई जिंदगी दीया। और जमाना गवाह है कि कर्बला में जिन्होंने शहादत पाई आज उनकी याद हर घर में है। लेकिन यजीद का नाम व निशान जमाने से मिट गया।
मुहर्रम, मानवता को त्याग समर्पण और शहादत का पैगाम देता है। कर्बला वालों की शहादत हमेशा याद रखी जाएगी। और उन के दिए गए पैगाम पर अमल किया जाएगा। जुल्म करने वाले को जमाना भुला देता है लेकिन जुल्म के खिलाफ अपनी जिंदगी कुर्बान करने वालों को इतिहास के पन्नों में हमेशा याद रखा जाता है। और हर धर्म के लोग उन्हे श्रद्धांजलि पेश करते है। और उनकी शहादत को शत-शत नमन करते हैं।
इंसान को बेदार तो हो लेने दो।
हर कौम पुकारेगी कि हमारे हैं हुसैन।
कर्बला ने इस्लाम को नई जिंदगी और नई ताकत अता की। मौला हुसैन ने हजरत अली अकबर, हजरत कासिम, औन व मोहम्मद, हजरत अली असगर के मुकद्दस लहू से दीन व शरीयत की हिफाजत फरमाइ। आपने अपना सब कुछ खुदा की राह में कुर्बान कर दिया लेकिन बातिल के आगे अपने सर को झुकने नही दीया।
इमामे हुसैन आपकी बहादुरी, सब्र और शुक्र को फरिश्ते सलाम करते हैं। कर्बला में जो लोग ईमाम हुसैन को और आले रसूल, अहलेबैत और दीन ए इस्लाम को मिटाने के लिए आए थे वह खुद मर गए मिट गए। उन का नाम व निशान इस जमाने से मिट गया। लेकिन इमामे हुसैन, अहले बैत और दीन ए इस्लाम जिंदा था, जिंदा है और सुबह कयामत तक जिंदा रहेगा।