स्टेट डेस्क/रांची। फिल्म निर्माता और निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर सबसे अधिक चर्चित और सर्च किया जानेवाले विषय है। खासकर फेसबुक पर तो पिछले तीन दिनों से सबसे अधिक पोस्ट इसी फिल्म से संबंधित हैं, उनमें ज्यादातर पोस्ट में फिल्म की तारीफ की जा रही है।
इसे कश्मीरी पंडितों या कहें गैर मुस्लिमों को कश्मीर घाटी से नरसंहार कर और डरा धमका कर जबरन अपना घरबार,संपत्ति और अपनी मातृ भूमि छोड़ने के लिए मजबूर करने जैसे गंभीर और संवेदनशील विषय पर ईमानदारी से फिल्म बनायी गयी है। द कश्मीर फाइल्स के बहाने कश्मीर के इतिहास और इसके ऐतिहासिक महत्व को समझने की आज काफी जरूरत है।

धरती का स्वर्ग : कश्मीर का नाम लेते ही एक अलग तरह के रोमांच का अनुभव होता है. कश्मीर के बारे में कहा जाता है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। लेकिन, इस स्वर्ग को कई लोगों की बुरी नजर लग गई। अब वादी के लाल गुलमोहर उतने हसीन नहीं रहे वे सुलगते अंगारों में तब्दील हो गए हैं। खासकर 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान पाकिस्तान ने कबालियों की आड़ में कश्मीर पर हमला कर उसपर जबरन कब्जा जमाना चाहा था।
आजादी के बाद ये हुआ : इसी दौरान जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय पर सहमति दी थी। इसके बाद भारतीय सेना ने कबालियों और पाकिस्तानी सेना को घाटी से निकाला, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस विवाद को यूएनओ में ले जाने की बेवकूफी कर दी। युद्धविराम के बाद नतीजा ये निकला कि जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से पर पाक का कब्जा है जिसे पाक अधिकृत कश्मीर(पीओके) कहा जाता है।
वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने एक बड़ा क्षेत्र चीन को भी दे दिया है जिसे अक्साई चीन कहते हैं। कश्मीर मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर का विवाद हो गया, जिसका राग गाहे बगाहे पाकिस्तान अलापता रहता है। कश्मीर समस्या को गहराई से जानने के लिए इसके इतिहास पर भी एक नजर डालना जरूरी है।
कश्मीर का इतिहास : कश्मीर का प्राचीन इतिहास कल्हण के ग्रंथ राजतरंगिणी में मिलता है। प्राचीन काल में यहाँ हिन्दू आर्य राजाओं का राज था। मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया। पूर्व-मध्ययुग में यहाँ के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने विशाल साम्राज्य क़ायम कर लिया था। कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा।
शैव दर्शन का केंद्र : कश्मीर शैव दर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहां के महान मनीषियों में पतञ्जलि, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनव गुप्त, कल्हण और क्षेमराज आदि जैसे विद्वान हुए हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योग वासिष्ठ यहीं लिखे गये।
वैसे इतिहास के लंबे कालखंड में यहां मौर्य, कुषाण, हूण, करकोटा, लोहरा, मुगल, अफगान, सिख और डोगरा राजाओं का राज रहा है। कश्मीर सदियों तक एशिया में संस्कृति एवं दर्शन शास्त्र का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा और सूफी संतों का दर्शन यहां की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
सिकन्दर बुतशिकन जैसे आताताई ने किया अत्याचार, शुरू हुआ पलायन का सिलसिला : कश्मीरी पंडितों का पहला पलायन सन 1320 के आस-पास हुआ. उस समय मंगोल मूल कातुर्कीस्तान से जुल्जु नामक एक हमलावर आया था। उसके बाद सिकंदर बुतशिकन के दौर में सन 1384 से 1413 तक कश्मीरी पंडितों का दूसरा बड़ा पलायन हुआ। सिकंदर बुतशिकन की मौत के बाद लगा कि आतंक और धर्मातरण का दौर थम जाएगा, लेकिन उसका बेटा शाह अली जिसने सन 1413 से 1430 तक कश्मीर पर शासन किया। बाप से भी बढ़कर निकला और कश्मीरी पंडितों का तीसरा बड़ा पलायन हुआ।
चौथा पलायन शमसुदीन इराकी के वक्त : चौथा पलायन सन 1477 से 1496 तक कश्मीर में शासन करने वाले शमसुदीन इराकी के वक्त में हुआ। शमसुदीन इराकी ने ही कश्मीर में इस्लाम की शिया विचारधारा को प्रोत्साहित किया था। इसके बाद करीब अढ़ाई सौ साल कश्मीर में मुस्लिमों के शासनकाल में हिंदुओं पर विभिन्न धार्मिक पाबंदियों के बावजूद कोई बड़ा पलायन नहीं हुआ, लेकिन औरंगजेब के शासनकाल में पांचवा पलायन कश्मीरी पंडितों का हुआ। छठा पलायन सन 1720 में मौला अब्दुल नबी के समय हुआ। सातवां पलायन कश्मीर में अफगान शासकों के सन 1753 से 1819 तक के शासनकाल में हुआ, जबकि आठवां करीब 94 साल बाद 1947 में कश्मीर पर कबाइली हमले के दौरान हुआ।
आजादी के बाद भी दो बार पलायन : कश्मीरी पंडितों ने आजादी के बाद भी दो बार पलायन किया। एक पलायन वर्ष 1950 के दशक में गुपचुप तरीके से हुआ और किसी ने इसकी सुध नहीं ली. कश्मीरी इतिहासकारों और विशेषज्ञों के अनुसार महाराजा के समय कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की आबादी कुल आबादी का पांच प्रतिशत थी। इसका बीस फीसद वर्ष 1950 के दशक में पलायन कर गया। इसके बाद वर्ष 1989 में कश्मीर में धर्माध जेहादियों और पाक परस्त अलगाववादियों ने कश्मीरी पंडितों को सामूहिक विस्थापन के लिए मजबूर किया। उसके बाद वह ऐसे अपनी जड़ों से उखडे़, अपने ही देश में शरणार्थी होकर रह गए हैं।
मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर क़ाबिज़ हो गये। कुछ मुसलमान शासक जैसे शाह ज़ैन-उल-अबिदीन हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे, लेकिन कई सुल्तान जैसे सिकन्दर बुतशिकन ने यहाँ के मूल कश्मीरी हिन्दुओं को मुसलमान बनने पर या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मजबूर कर दिया। इसी दौरान कश्मीर में हिंदू मंदिरों और बौद्ध मठों को ध्वस्त करने का सिलसिला शुरू हुआ था। कुछ ही सदियों में कश्मीर घाटी में मुस्लिम बहुमत हो गया। इसके बाद बारी- बारी से अफ़ग़ान, कश्मीरी मुसलमान, मुग़ल आदि वंशों के पास कश्मीर का शासन गया। मुग़ल सल्तनत गिरने के बाद से सिख महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में शामिल हो गया।
डोगरा वंश का शासन : कुछ समय बाद जम्मू के हिन्दू डोगरा राजा गुलाब सिंह डोगरा ने ब्रिटिश लोगों के साथ सन्धि करके जम्मू के साथ- साथ कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया . डोगरा वंश भारत की आज़ादी तक कायम रहा।
भारत को परेशान करने का जरिया बना कश्मीर : पाकिस्तान की बुनियाद ही गलत सिद्धांत पर रखी गई थी. भारत से यह मुल्क इस आधार पर अलग हुआ कि मुसलमानों के लिए अलग देश होना चाहिए. हिंदू और मुसलमान एक देश में नहीं रह सकते क्योंकि उनके हित अलग है. लेकिन यह दलील कुछ वर्षों में ही खोखली साबित हो गई. पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान भाई पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी दबदबे वाली और ऊर्दू परस्त सरकार के अत्याचार से तंग आ गए. इसलिए 1971 में पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश का रूप ले लिया. इसने मुसलमानों के लिए एक राष्ट्र के नारे की धज्जी उड़ा दी।
कश्मीर में अलगाववाद : कश्मीर में भी उग्र अलगाववादी आंदोलन तेज हुआ. कई उग्रवादी संगठन खड़़े हो गए जैसे जेकेएलएफ, हिजबुल मुजाहिदीन, लश्करे तोइबा, हरकत उल अंसार और जैश ए मोहम्द आदि. इन्होंने कश्मीर को अलग मुल्क बनाने की सोची. 19 जनवरी 1990 को ये आतंकी दौर अपने उफान पर पहुंच गया. दीवारों पर गैर मुस्लिमों को कश्मीर छोड़ कर जाने या फिर मरने को तैयार रहने की धमकी दी गयी. बकायदा मसजिदों से ऐलान किया गया कि हिंदू अपनी महिलाओं को छोड़कर घाटी से भाग जायें नहीं तो उनको मौत के घाट उतार दिया जायेगा।
इस दौरान घाटी से बचे-खुचे 5 लाख कश्मीरी पंडितों में से काफी लोगों का कत्लेआम कर उन्हें अपनी महिलाओं और बच्चों को छोड़ कर भागने को मजबूर किया गया. हजारों महिलाओं से दुष्कर्म हुए और जबरन धर्म परिर्वतन कर मसलमानों से निकाह करने पर मजबूर किया गया। गांव के गांव नष्ट कर दिये गए वहां के बचे लोगों को अपना घर छोड़ कर भागने को मजबूर कर दिया गया. ये कश्मीरी पंडित आज जम्मू , दिल्ली या देश के अन्य हिस्सों में शरणार्थी के रूप में रहने को मजबूर हैं. इस समय केंद्र में प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार थी और जम्मू –कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुला थे।
पाकिस्तान, सिंधियों, पख्तूनों, पंजाबी, बांग्लादेश, मुहाजिर, लद्दाख जो बौद्ध बहुल, कश्मीर को अलग मानने वाले इन बातों पर गौर करें : अभी के जो हालात हैं उसमें कश्मीर को अलग मुल्क बनाना लगभग नामुमकिन सा लगता है. भारत और पाकिस्तान दोनों ऐसा नहीं होने देंगे. पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर महज इसलिए की वहां की आबादी मुस्लिम बहुल है इसलिए वो पाकिस्तान में शामिल हो जाए. इस विकल्प पर जो कश्मीरी खुश होते हैं या विचार करते हैं उनके लिए ही बांग्लादेश का इतिहास बताया गया है।
भारत से बंटवारे के समय पाकिस्तान गए लोगों को मुहाजिर कहा जाता है. उन्हें वहां दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखा गया है. इनपर भी गौर फरमाएंगे तो भी उनकी पाकिस्तान परस्ती हवा हो जाएगी. पाकिस्तान के अन्य समुदायों पर भी ध्यान दें तो उनकी आंखे खुल जाएंगी . सिंधियों और पख्तूनों पर भी पंजाबी दबदबे में अत्याचार होते हैं. और हां कश्मीर केवल घाटी मात्र नहीं है आप जम्मू का क्या करोगे वह तो हिंदू बहुल है उसे भारत में ही रहने दोगे. इसके बाद लद्दाख जो बौद्ध बहुल है उसका क्या करिएगा जनाब उसे अलग देश बनवाओगे या फिर भारत के ही पास रहने दोगे।
इस लंबे चौड़े लेख का मकसद सिर्फ ये है कि आप अपनी सोच जितनी संकीर्ण रखोगे उतनी ही परेशानी अधिक होगी. अभी भारत में ही कश्मीर के रहने से कश्मीरियों को काफी लाभ है वे भारतीय नागरिक होने के कारण पूरे भारत में कहीं भी रह सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं संपत्ति खरीद सकते हैं। भारत जैसे बड़े और विकासशील देश में उनके लिए और उनकी आनेवाली नस्लों के लिए उन्नति के ज्यादा मौके हैं. कश्मीर में हिंसा एकदम से बंद हो तो वहां पर्यटन से काफी आय हो सकती है. वहां के उद्योग-घंधे भी तेजी से आगे बढ़ सकते हैं. अब ये कश्मीरियों के हाथों में है कि वे कुएं के मेढ़क बनकर पाकिस्तान और आइएस के हाथ की कठपुतली बनकर रहना चाहते हैं या फिर भारत जैसे विशाल सागर के साथ पूरी तरह मिलकर अपना संपूर्ण विकास चाहते हैं।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है जो कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों जैसा बनाने और वहां के अलगावादी रंग को खत्म करने की ओर अच्छा प्रयास है. अनुच्छेद 370 हटने से अलगाववादियों को मिर्ची लगी है. वे अब भी घाटी में बेगुनाह गैरमुस्लिमों की जब तब हत्या कर अन्य लोगों को वहां से भगाने की अपनी कुत्सित मंशा में लगे हुए हैं. अभी हाल ही में एक स्कूल में शिक्षकों को चिह्नित कर गोली मारकर हत्या की गयी थी।
यह भी पढ़ें…
अब पुख्ता सुरक्षा के साथ हो पुनर्वास : अब केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो कश्मीर से पलायन करने को मजबूर हुए गैर मुस्लिमों को फिर से वापस अपनी सरजमीं पर बसाने और उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए. राज्य में नौकरियों खासकर पुलिस में इनको विशेष आरक्षण देकर इनकी संख्या संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।