Ranchi, शिवानंद गिरि। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Baish)ने चुनाव आयोग को कर दी है। अब सवाल है कि सदस्यता जायेगी तो क्या- क्या होगा। क्या सीएम हेमंत सोरेन दोबारा मुख्यमंत्री चुने जायेंगे। झारखंड के राजनीति की दिशा क्या होगी।
राज्यपाल अपना फैसला हेमंत सोरेन के खिलाफ सुनाते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी इस्तीफा देना होगा। इसके साथ ही इस बात की अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि झारखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा। राजनीतिक जानकारों की मानें तो हेमंत सोरेन के पास कम से कम तीन ऐसे रास्ते बचे हुए हैं, जिससे सत्ता उनके पास या उनके परिवार के पास ही रहेगी। दिलचस्प यह है कि उनके गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के मुखिया दो रास्तों का इस्तेमाल कर चुके हैं।
बसंत सोरेन पर भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस
रांची के वरिष्ठ पत्रकार अशोक गोप के अनुसार अटकलें है कि हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री पद पर बिठा सकते हैं। लेकिन वे ओड़िसा की रहनेवाली है और यहां उनके लिए इस पद पर बैठना भाजपा को एक नया मुद्दा दे देगा। वे कहते हैं हेमंत के भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं, लेकिन उनके खिलाफ भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस चल रहा है, जिसमें 29 अगस्त को फैसला आ सकता है।
स्वास्थ्य कारणों से शिबू सोरेन का विकल्प बेमानी
इसके दीगर झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का विकल्प भी मौजूद हैं, लेकिन उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री यह पद नहीं ग्रहण करेंगे। हेमंत की मां का भी नाम भी चर्चा में है । लेकिन सवाल ये है कि ऐसे में वैसे लोग जो विधायक नही हैं उन्हें 6 महीने में चुनाव जीत कर आना होगा लेकिन झारखंड में मतदाता पुनर्ररीक्षण का काम चल रहा है जिस कारण अगले 6 महीने तक चुनाव करा पाना यहां संभव नहीं है।
चंपई सोरेन की दावेदारी सबसे मजबूत
ऐसे में हेमंत या उनके परिवार के किसी व्यक्ति के लिए मुख्यमंत्री बनना आगे के लिए काफी परेशानी वाला होगा। ऐसी परिस्थिति में हेमंत के लिए अपने मंत्री चंपई सोरेन और जोबा मांझी पर भरोसा करने की चर्चा है । चंपई सोरेन काफी विश्वसनीय और पारिवारिक सदस्य हैं। जिन्होंने झारखंड आंदोलन में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ काफी संघर्ष किया था। इतना ही नहीं वह शिबू सोरेन सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। इसलिए उनकी दावेदारी मजबूत दिखती है।
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क का मानना है कि हेमंत सोरेन के पास एक तीसरा विकल्प कोर्ट जाने का भी है। वह राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, झामुमो सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस विकल्प पर विचार नहीं कर रही है। लेकिन वे ऐसा नहीं करने वाले हैं।
भाजपा चाहती है मध्यावधि चुनाव
ओमप्रकाश आगे कहते हैं कि हेमंत सोरेन के खिलाफ शिकायत करने वाली भाजपा उनकी सदस्यता जाने को अपनी जीत के रूप में पेश कर रही है। भाजपा सांसद निशिकांत दूबे जिस तरह से ट्विटर पर मोर्चा संभाले हुए हैं उससे लगता है कि यह चुनाव हो। भाजपा नेताओं ने मांग की है कि हेमंत सोरेन जनता का सामना करें और मध्यावधि चुनाव कराया जाए। हालांकि, झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन ने साफ कर दिया है कि सरकार पर कोई संकट नहीं है। सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल मौजूद है और सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सकती है।महागठबंधन के विधायकों की बैठक ही रही है और वे सरकार के प्रति आस्था भी जाता रहे हैं।कहा तो जकड़ा है कि यहां से विधायकों को छत्तीसगढ़ शिफ्ट कर दिया जाय और समय पर आकर अपना वोटिंग कर सकें।
ऑपरेशन लोटस की सफलता का चांस यहां पर नहीं
हालांकि उनका मानना है कि बिहार में जिस तरह से भाजपा को सत्ता गवानी पड़ी और झारखंड में ऑपरेशन लोटस सफल करने में लगी थी ,लेकिन कांग्रेस के तीन विधायकों के कोलकाता में पकड़े जाने के बाद यह सफल होता नहीं दिखता है।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन आज क्या रास्ता अपनाते हैं, अपने परिवार पर भरोसा करते हैं या मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों पर।