चंपारण : परमात्मा असीम और अनंत हैं, उनकी प्राप्ति का कोई निश्चित मार्ग नहीं ; डॉ रामगोपाल

मोतिहारी

मोतिहारी/ राजन द्विवेदी। सिंह बाबा मंदिर परिसर में रामचरितमानस यज्ञ एवं श्रीराम कथा के चौथे दिन श्रीराम कथा का प्रारंभ भागवत भजन से हुआ। कार्यक्रम में मंच संचालन प्रो राम निरंजन पांडेय ने किया। वहीं यूपी के बांदा से पधारे विद्वान कथावाचक मानस रत्न डॉक्टर राम गोपाल तिवारी जी ने प्रभु राम और लक्ष्मण के जनकपुर नगर देखने के प्रसंग से अध्यात्मिक विवेचना प्रारंभ की। उन्होंने बताया कि लक्ष्मण जी के द्वारा जनकपुर नगर देखने की इच्छा प्रकट करने के पश्चात प्रभु राम ने गुरु विश्वामित्र जी से इसकी अनुमति मांगी तो विश्वामित्र जी ने भगवान राम से न केवल लक्ष्मण को भ्रमण कराने का, अपितु दोनों भाइयों के सुंदर बदन को सभी नगर वासियों को दिखा देने का आदेश दिया।

बताया कि जीवात्मा दो प्रकार के होते हैं । एक वे जीवात्मा जो अपना धाम, काम, दाम और नाम का परित्याग करके परमात्मा को देखने निकल पड़ते हैं। ऐसे जीवात्मा ज्ञान मार्ग के अनुगामी होते हैं। दूसरे प्रकार की जीवात्मा अपने धाम, काम, दाम और नाम में लगे रहकर भी स्वयं परमात्मा के कृपा दृष्टि के अभिलाषी होते हैं। यदि उनका भाव परमात्मा के सच्चे अनुराग से अभिप्रेत होते हैं तो उन्हें भगवान को ज्ञान की दृष्टि से देखने की आवश्यकता नहीं होती।

अपितु ऐसों पर भगवान स्वयं कृपा करके उन्हें देख लेते हैं। बताया सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माता शबरी जी हैं। बताया कि आज तक जितने भी ऋषि, महर्षि, योगी, तपस्वी एवं साधकों ने परमात्मा का साक्षात्कार किए हैं, उन सभी की दृष्टि परमात्मा की विभूति के दर्शन के पश्चात इस क्षणभंगुर संसार से उदासीन हो जाता है। जनकपुर की पुष्प वाटिका में ब्रह्म राम से सबसे पहले साक्षात्कार की हुई। सखी से जब सीता जी राम के बारे में पूछती हैं तो वह सखी कुछ भी स्पष्ट नहीं बता पाती।

इस स्थिति को मानस में गोस्वामी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से व्यक्त किए हैं ” गिरा अनयन नयन बिनु बानी “। अर्थात जिस नेत्र ने परमात्मा का दर्शन किया उसके पास वाणी नहीं है और जिस जीभ के पास वाणी है तो उसने परमात्मा को तो देखा ही नहीं। क्योंकि जीभ के पास नेत्र नहीं होता। महाराज जी ने कथा सरोवर में डुबकी लगाते हुए श्रद्धालु भक्तों को बताया कि परमात्मा असीम और अनंत है। उसके प्राप्ति का कोई एक निश्चित मार्ग या विधि नहीं है और ऐसा कोई गुरु भी नहीं जो सीधे परमात्मा को प्राप्त करा दे।