मोतिहारी / राजन द्विवेदी। परम पवित्र एवं सर्वश्रेष्ठ महाशिवरात्रि व्रत का मान 26 फरवरी बुधवार को होगा। व्रत का पारण दूसरे दिन अर्थात् गुरुवार को प्रातःकाल किया जाएगा। देवाधिदेव महादेव का निराकार से साकार के रूप में प्रकटीकरण का यह महान पर्व जगह-जगह अपनी श्रद्धा एवं परम्परा के अनुसार शिवभक्तों के लिए यह वर्षभर का सबसे पुनीत पर्व होता है इसदिन जगह-जगह मंदिरों से निकली शिव बारात श्रद्धा एवं आकर्षण का केंद्र बनती है।

उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि यद्यपि प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी शिवरात्रि होती है और शिवभक्त प्रत्येक कृष्ण चतुर्दशी व्रत करते ही हैं,किन्तु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के अर्धरात्रि में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था,इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है। जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में पूजन करना अतिशय उत्तम होता है।
चूंकि चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं अथवा शिव की तिथि चतुर्दशी है,अतः उनकी रात्रि में व्रत और पूजन किया जाने से इस व्रत का नाम शिवरात्रि होना सार्थक हो जाता है। इस दिन उनका पूजन एवं व्रत करना अत्यन्त कल्याणकारी होता है। स्कन्दपुराण के अनुसार इस दिन रात्रि के समय भूत,प्रेत,पिशाच,शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं,अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के ज्ञाताज्ञात समस्त पापों का शमन होता है तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
इस दिन मंदिर अथवा अपने घरों में जल एवं पंचामृत से स्नान कराने के पश्चात् चंदन, भस्म, अक्षत, पुष्प, बिल्वपत्र, दूर्वा,शमी,तुलसी मंजरी,मदार पुष्प,धतूरे का पुष्प एवं फल,कमल पुष्प,भांग,अबीर-गुलाल,इत्र धूप,दीप एवं नैवेद्य आदि से सपरिवार शिव का पूजन कर आरती व पुष्पांजलि करने का विधान है। इस दिन विभिन्न सामग्रियों से रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है।