मोतिहारी/राजन द्विवेदी। आपातकाल 1975 में स्थापित नगर की सांस्कृतिक संस्था स्वामी हरिदास संगीत विद्यापीठ ने वार्षिक समारोह आयोजित करने के सिलसिले में बैठक हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता देव प्रिये मुखर्जी ने की। इस दौरान जिले के जाने-माने संस्कृतिकर्मी भाग लिए।
बैठक में वार्षिकोत्सव समारोह को ऐतिहासिक बनाने का निर्णय लिया गया। अध्यक्षता करते हुए मुखर्जी ने कहा कि यह संस्था आपातकाल के गर्भ से निकली है। शोषण, दमन, महंगाई और भ्रष्टाचार से जब पूरा देश तबाह था बिहार के लोग त्राहिमाम कर रहे थे। उस दौरान जेपी के नेतृत्व में जो आंदोलन हुआ। उसी दौरान कृष्णा प्रसाद ने इस संस्था का गठन कर व्यवस्था का विरोध अपने कला के माध्यम से किया कि पश्चात संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को रोकने मे संस्था लगातार प्रयासरत है।
संस्था देश के कई भागो मे कई यादगार प्रस्तुति कर चुकी है। 7 मई के कार्यक्रम को संस्थापक कृष्णा प्रसाद ने अपनी दिवंगत पत्नी अनीता सिन्हा के नाम समर्पित किया है। संस्था को आगे बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बैठक में गायक एवं पूर्व डीओ अनिल वर्मा ,डॉ विवेक कुमार गौरव, रवीश मिश्रा, अभय अनन्त, इंजीनियर अजय कुमार आजाद, रत्नेश्वरी शर्मा, अर्चना कुमारी, दीक्षा कुमारी, रिया कुमारी आदि मौजूद थे।
सचिव कृष्णा प्रसाद ने कार्यक्रम के प्रारूप पर बताया कि जिले में लोक संस्कृति के क्षेत्र में काफी सधे और मजे हुए कलाकार हैं। इन कलाकारों के बदौलत संस्था द्वारा राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, पटना, सोनपुर मेला आदि कई महत्वपूर्ण जगहों पर बड़े-बड़े आयोजन कर चंपारण की उन्नत संस्कृति से लोगों को साक्षात्कार कराया गया है। संस्था वहां से कई पुरस्कार लेकर के आई है। वर्तमान दौर में भोजपुरी गीत के नाम पर अश्लीलता परोसी जा रही है। साथ साथ पश्चिम के कान फाडू संस्कृति से जनता ऊब चुकी है। तनाव में चल रही जनता शन्ति और सुकून चाहती है।
भारतीय वाद्य एवं गीत तथा लोक संस्कृति में शांति है और मन को तृप्ति भी मिलती है। हम लोगों ने इस संस्था का गठन जब किया तो उस समय जो सिद्धांत और नीति बनी उसमे सिर्फ भारतीय लोक संस्कृति को लेकर चलने का निर्णय लिया गया। आज भी संस्था इस पर कायम है। हम लोग कार्यक्रम में इन सब बातों का ध्यान रखते हैं।
7 मई को जो प्रोग्राम होने वाला है उसमें भी चंपारण के विलुप्त संस्कृति ,लोक गीत एवं गजल की प्रस्तुति की जाएगी। कहा कि पश्चिम संस्कृति के प्राभाव को रोकने का एकमात्र आधार लोक संस्कृति की प्रस्तुती है। 7 मई को लोक संस्कृति की धारा बहेगी। सरकारी सहयोग पर उन्होंने कहा कि सरकारी अनुदान नहीं मिलती है। कलाकारों के सहयोग एवं शहर के संगीत प्रेमियों की भागीदारी से हमलोग आयोजन करते है।