मोतिहारी/प्रतिनिधि। स्कूलों में चल रही मिड-डे मील योजना पूरे विकास खंड क्षेत्र में बुरी तरह भ्रष्टाचार के चंगुल में है। बच्चों को पोषणयुक्त भोजन के लिए संचालित इस योजना में हो रही बंदरबांट का खमियाजा बच्चे भुगत रहे हैं। यहां बता दें कि देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की चिंता विद्यालयों में यह पैसों की अति लालसा अभी कितने घिनौने पाप और कराएगी, कहा नहीं जा सकता। इसका सीधा उदाहरण राजकीय मध्य विद्यालय महम्मदपूर पर सटिक बैठता है। जहां विद्यालय में मेनू के हिसाब से बच्चे को भोजन नहीं कराया जा रहा है। जीसका विडियो फुटेज हमारे चैनल के माध्यम से देख सकते है।
वैसे तो सरकारें दिन-रात दावा करती हैं कि देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की चिंता उन्हें हर वक्त लगी रहती है। लेकिन प्रखंड के चंद शिक्षक उसे मटियामेट कर रहे हैं। ऐसी घटनाएं प्रखंड के दर्जनों विद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार सरेआम चल रहा है।जीसकी जिम्मेदारी लेने को कोई भी अधिकारी तैयार नहीं है। गंदे परिवेश में पकाए गए खाद्यान्न का सेवन कर क्या बच्चों की सेहत और मस्तिष्क सही रह पाएगा। वहीं शिक्षा विभाग और प्रशासन का भारी- भरकम अमला क्या अभी तक सो रही है या फिर किन्हीं कारणों से जान-बूझ कर आंखें बंद किए बैठा है।
यदि भ्रष्टाचार करते पकड़े जाओ और भ्रष्टाचार करके बच जाओ का फॉर्मूला जारी रहा तो भगवान ही मालिक है बच्चों के भविष्य का, कल के भारत का। सरकार या तो मिड-डे मील योजना का निस्वार्थ संचालन सुनिश्चित करे या इसे तब तक के लिए बंद कर दे जब तक कि सभी खामियां दूर न कर ली जाएं।ऐसी घटनाएं से यह प्रतीत होता है कि जहाँ पर मिड डे मील योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ नितीश सरकार के जीरो टॉलरेंस नीति को मुंह चिढ़ा रहे हैं, जहां सरकार द्वारा संचालित योजना पूरी तरह से फेल हो चुकी है, यहाँ मिड डे मील योजना का सिर्फ मजाक बना कर रखा गया है, न तो नैनिहालों को मौसमी सब्जी मिलती है न तो फल और दूध मिल पाता है, विद्यालय मानक के बिल्कुल विपरीत बच्चों को भोजन दिया जाता है।
सूत्रों की माने तो विद्यालय में नैनिहालों की संख्या 100 के ऊपर होने पर प्रतिवर्ष भारी भरकम रकम भी विद्यालय के रखरखाव के लिए आता है, लेकिन धन कहा जाता है किसी को नहीं पता, इस विद्यालय में शौचालय की दशा देख रोंगटे खड़े हो जायेंगे, राजकीय मध्य विद्यालय महम्मदपूर में पिने युक्त पानी की भी काफी जटिल समस्या है।और भी बहुत सारी कमीयां है।बच्चों का भोजन ज्यादातर चूल्हे पर बनता है, जबकि शासन द्वारा गैस की व्यवस्था की गई है, विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक से जब इस पर बात करने की कोशिश की गई तो जबाब देने से बचते नजर आये तथा आंख लाल पिला करने लगे।इस संदर्भ में स्थानीय शिक्षा पदाधिकारी बिन्दा महतो से संपर्क करने पर वे अपने दफ्तर से गायब देखे गए।