Special Story : पढ़िए ज्योतिष में रत्नों का महत्व

धर्म

रत्नों का ज्योतिष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है, सभी रत्नों में अपूर्व दैवी शक्ति निहित है। रत्नों का मानव जीवन पर जो प्रभाव पड़ता है। वह ग्रहो के अनेक प्रकार की किरणों की उत्सर्जन क्षमता के कारण है, अतः ज्योतिष के अनुसार कोनसा ग्रह कोनसे रंग की किरण से power full होता है। उसी के अनुसार ग्रहों के रत्न निर्धारित किसी भी ग्रह के निर्धारित रत्न द्वारा उसके रंग की किरणें मानव शरीर मे प्रवेश कर उत्सर्जन से अपना प्रभाव सुदृढ बनाती है रत्न एक प्रकार से यन्त्र के समान कार्य करता है और मानव शरीर मे उन किरणों की आवश्यकता अनुसार हानि या लाभ पहुचाता है।

कोनसा रत्न कबं उपयुक्त होगा और कब हानि पर्द होगा। इसमें सभी ज्योतिष विद्वानों की एक राय निहि है कुछ विद्वान कहते है कि जो ग्रह कुंडली मे पीड़ा कारक होता है। उस ग्रह का रत्न सुभ् फल कारक होता है, कुछ विद्वान का मत है कि अशुभ फल देता ग्रह का रत्न धारण करने से पीड़ा और बढ़ जाती है। ज्योतिष का एक मत कहता है कि शुभ् ग्रहो के रत्न ही आवश्यकता अनुसार धारण करने चाहिए। एक ज्योतिष मत कहता है कि जो ग्रह जिस महा दशा का स्वामी हो उस ग्रह का रत्न उसकी महा दशा में धारण करना चाहिये चाहे महादशा का स्वामी कुंडली मे असुभ ही क्यो न हो !

अतः जन्म कुंडली का परीक्षण करके ये देख लेना चाहिय कि कोनसा ग्रह अशुभ है। मेरी निजी राय में अशुभ ग्रहों का रत्न जातक को कभी धारण निहि करना चाहिये। आज के युग मे रत्न धारण करना एक फैशन होगया है और astrologer भी जातक को बिना हिचकिचाहट के रत्न धारण करने की सलाह प्रदान करते है। आखिर रत्न धारण करने का समुचित आधार क्या है ??? जन्म पत्रिका में शुभ व कारक ग्रह का ही रत्न धारण करना चाहिये। विशेष कर उसी ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए जो कुंडली मे शुभ हो और उसकी दशा या अंतर दशा runing में हो। यदि अशुभ ग्रह की दशा चल रही होतो उसकी प्रत्यंतर दशा में जो शुभ ग्रह आने वाला हो उनकी अंतर दशा का रत्न धारण करे।

मित्र ग्रहों के रत्न एक साथ धारण कर सकते है परंतु शत्रु ग्रहों के रत्न एक साथ धारण नही करने चाहिये अन्यथा वो अशुभ फल ही प्रदान करेंगे। सूर्य – मंगल – बृहस्पति मित्र ग्रह है यदि जातक की कुंडली मे इनकी स्थिति शुभ है तो माणिक्य – मूंगा व पुखराज पहन सकते है। शनि – बुध – शुक्र मित्र है अतः नीलम हीरा व पन्ना एक साथ पहन सकते है। परन्तु शुक्र – वृहस्पति सुभ ग्रह होते हुए भी एक दूसरे के शत्रु है अतः इनके रत्न एकसाथ नही पहनने चाहिये !!

आम धारणा है कि त्रिकोण सैदेव शुभ होता है परंतु इन तीनो में भी कोई ग्रह शुभह स्थित न हो तो भी इनका रत्न धारण नही करना चाहिये। शुभ ग्रह यदि अस्त है या कुंडली मे निर्बल है तो उस ग्रह का रत्न अवश्य धारण करना चाहिए !! भाग्येश अगर निर्बल है या अस्त है तो उसका रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। अगर त्रिकोण भाव का स्वामी नीच का है तो उस भाव का रत्न धारण नही करना चाहिए ¡¡ कभी भी मारक – बाधक या अशुभ ग्रह कारत्न धारण नही करना चाहिए !!
किसी भी शुभ ग्रह की दशा या अंतर दशा आने पर ही उक्त ग्रह का रत्न धारण करना लाभकारी होता है।

व्यर्थ में रत्न धारण करने से कोई लाभ नही होता है, किसी भी ग्रह के शुभ फल प्राप्ति हेतु कोन से रत्न धारण करने चाहिय :
ज्योतिष शास्त्र में रत्न पहनने के पूर्व कई निर्देश दिए गए हैं। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं। सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियां।
रत्न धारण करने में जितनी भूमिका रत्न की होती है उतनी ही भूमिका रत्न के विदिवत धारण करने की होती है अतः कोई भी रत्न जातक को शुभ महूर्त के अनुसार ही धारण करना चाहिये।

कब रत्न धारण ना करें :
रत्न धारण करने से पहले यह देख लें कि कहीं 4, 9 और 14 तिथि तो नहीं है. इनफ़तेह चंद तारीखों को रत्न धारण नहीं करना चाहिए. यह भी ध्यान रखें कि जिस दिन रत्न धारण करें उस दिन गोचर का चंद्रमा आपकी राशि से 4,8,12 में ना हो. अमावस्या, ग्रहण और संक्रान्ति के दिन भी रत्न धारण ना करें.

किस नक्षत्र में रत्न धारण करें :
मोति, मूंगा जो समुद्र से उत्पन्न रत्न हैं, यदि रेवती, अश्विनी, रोहिणी, चित्रा, स्वाति और विशाखा नक्षत्र में धारण करें तो विशेष शुभ माना जाता है. सुहागिन महिलाएं रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य नक्षत्र में रत्न धारण ना करें. ये रेवती, अश्विनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा नक्षत्र में रत्न धारण करें, तो विशेष लाभ होता है.