डेस्क। हर साल विजयादशमी यानी दशहरे पर शस्त्र पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है। ये परंपरा हमें सिखाती है कि बिना शस्त्रों के कोई भी युद्ध नहीं जीता जा सकता।आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यानी दशहरे पर जयादशमी का पर्व मनाया जाता है।

आज 1 2 अक्टूबर, शनिवार को मनाया मनाया जा रहा है विजयदशमी का पर्व। इस दिन कईं परंपराएं निभाई जाती हैं जैसे रावण का पुतलों का दहन, जवारे विसर्जन, शमी पूजा और शस्त्र पूजा आदि।
दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। इस दिन पुलिस और सेना द्वारा भी शस्त्र की पूजा की जाती है। आगे जानिए दशहरे प कयों करते हैं शस्त्र पूजा, विधि-मंत्र और शुभ मुहूर्त…
शस्त्र पूजा के शुभ मुहूर्त :
आज 12 अक्टूबर, शनिवार की सुबह 09 बजकर 30 मिनिट से शुरू हो करके, संध्या समय 5:30 तक अति सर्वोत्तम मुहूर्त
दशहरे पर इस विधि से करें शस्त्र पूजा : दशहरे की सुबह स्नान आदि करने के शुभ मुहूर्त में किसी साफ स्थान पर देवी का चित्र स्थापत करें। देवी के चित्र के सामने या आस-पास सभी अस्त्र-शस्त्र व्यवस्थित तरीके से रख दें।
इन अस्त्र-शस्त्रों पर जल छिड़क कर पवित्र करें। इन शस्त्रों पर मौली (पूजा का धागा) भी बांधे। कुमकुम से सभी पर तिलक करें और धूप-दीप जलाएं। देवी को मिठाई का भोग भी लगाएं।
शस्त्र पूजा करते समय ये मंत्र बोलें :
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये।
पूजा के बाद शस्त्रों का प्रयोग भी करें जैसे हवाई फायर। तलवार या अन्य कोई शस्त्र हो तो उसका प्रदर्शन करें। शस्त्र पूजा से शोक और भय दूर होता है। देवी विजया भी प्रसन्न होती हैं।
क्यों की जाती है शस्त्र पूजा?
पुराणों के अनुसार, प्राचीन समय में महिषासुर नाम का एक दैत्य था। उने देवताओं का भी पराजित कर दिया था। तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने अपने शक्तियों से एक शक्ति उत्पन्न की। इस शक्ति का नाम देवी दुर्गा रखा गया। देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र देकर शक्तिशाली बनाया।
इन्हीं दिव्य अस्त्र-शस्त्र की सहायता से देवी ने महिषासुर का वध किया। जिस दिन देवी ने महिषासुर का वध किया, उस दिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। अस््रो के महत्व को समझते हुए ही तभी से विजयादशमी पर शस्त्र पूजा की परंपरा बनाई गई।
दशहरे पर नीलकंठ पक्षी को लेकर क्या मान्यता है
मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. दरअसल, नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है।
माता चंद्रिका क स्मरण
नवदुर्गा की उपासना के बाद, दसवें दिन मातृ शक्ति की आराधना का विशेष महत्व होता है। इस दिन देवी चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन किया जाता है. यह पूजा न केवल शस्त्रों की शक्ति को बढ़ाने के लिए की जाती है, बल्कि यह एक प्रतीक भी है कि व्यक्ति अपने जीवन में हर क्षेत्र में विजय प्राप् कर सके।
इतिहास और परंपरा
भारतीय संस्कृति में शस्त्र पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है. इसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णित किया गया है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित की गई थी। जिन्होंने अपने उपकरणों और शस्त्रों को शक्ति और सम्मान का प्रतीक माना. विजयादशमी के अवसर पर इस परंपरा को मनाना हमारी संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।
विजयादशमी पर शस्त्र पजा एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने शस्त्रों और औजारों को सम्मानित करते हैं और उन्हें शक्ति और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। यह परंपरा न केवल व्यक्तिगत सफलता का प्रतीक है, बल्कि यह समाज की एकता और संस्कृति को भी दर्शाती है। इस दिन, हम सबको एक साथ मिलकर अपनी परंपराओं का पालन करना चाहिए और विजयादशमी े इस पर्व को एक विशेष तरीके से मनाना चाहिए।
सामाजिक एकता और त्यौहार का महत्व
शस्त्र पूजा का आयोजन सामूहिक रूप से भी किया जाता है। कई स्थानों पर लोग एकत्र होकर सामूहिक शस्त्र पूजा करते हैं, जिससे सामाजिक एकता और भाईचारे की भावना मजबूत होती है। यह त्योहार केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग के लोगं को एकजुट करने का एक माध्यम है।