कमिश्नरेट के बाद पुलिस पर कार्य का दबाव अधिक से होने से परेशान फोर्स के सिपाही

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कानपुर/भूपेंद्र सिंह। प्रदेश में कमिश्नरेट व्य्वस्था शुरु होने के बाद से पुलिस बल पर कार्य का दबाव अधिक बढने लगा है। हालांकि ये व्यवस्था अभी चार ही प्रमुख शहरों में भले ही लागू की गयी हो लेकिन लखनऊ और कानपुर के पुलिस बल के सदस्यों पर काम का दबाव कुछ और भी अधिक है। इसी के चलते आये दिन कई पुलिस वालों को कई कई दिन तक रोजाना बिना अपने परिवार वालों से मिले अपनी ड्यूटी करनी पड रही है।

इसी के चलते कई पुलिस वाले दुर्घटनाओं का शिकार भी हो रहे है। अभी हाल ही में चकेरी थाने में कार्यरत सिपाही जगत नारायण की देर रात गश्त के दौरान मौत हो गई थी। घटना की वजह लगातार काम के दबाव के चलते नींद पूरी न होना बताई गई थी। ऐसा कोई पहली बार नहीं कि जगत नारायण जैसे पुलिस कर्मी की मौत अत्यधिक कार्य के दबाव के कारण हुयी है। इससे पहले भी कई पुलिस कर्मी नींद न पूरी होने के चलते अपनी जान सडक पर ही गंवा चुके हैं।

कानपुर शहर जिसकी आबादी सिर्फ 54 लाख कागजों में है वहां कमिश्नरेट पुलिस व्यवस्था लागू होने के बाद भले ही पुलिस फोर्स बढ़ गया हो लेकिन इसके बावजूद पुलिसकर्मियों को कोई राहत नहीं मिली है। दस दिन की ड्यूटी के बाद एक दिन के अवकाश की व्यवस्था शुरू हुई, लेकिन अब यह व्यवस्था भी बंद हो गई है।

चकेरी थाने में तैनात जगमोहन सिंह यादव(बदला हुआ नाम) ने बताया 12-12 घंटों की ड्यूटी काम का बोझ और परिवार से दूरी हम लोगों को तनावग्रस्त कर रही है। इसी समस्या के चलते पुलिसकर्मी परिवार को साथ भी नहीं रख पाते है। काम के बोझ और इमरजेंसी में भी कभी-कभी छुट्टी न मिलने की खीझ हमको होती है लेकिन अपने चेहरों को इतनी गर्मी ठन्डे पानी से धोते हुए साफ कर लेते है क्योंकि वह जानते है कि उनकी कोई सुनने वाला है ही नहीं। थाना प्रभारी से लेकर दरोगा और सिपाही तक भारी दबाव के बीच काम करते है और पर्याप्त आराम न मिलने के कारण अनिद्रा और अन्य बीमारियों के शिकार हो रहे है।

चकेरी की कोयला नगर चौकी में तैनात हेड कांस्टेबल जगतनारायण भी कहीं न कहीं इन्हीं समस्याओं से जूझ रहे थे जिससे यह हादसा हो गया और उनकी असमय मौत हो गयी। जगतनारायण की तरह ही महकमे में ऐसे हजारों पुलिसकर्मी है जो अवकाश न मिलने के चलते काम के बोझ, अनिद्रा और रक्तचाप जैसी समस्याओं से जूझ रहे है। पिछले साल मार्च महीने में कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने के बाद शहर के पहले पुलिस आयुक्त असीम अरुण ने पुलिसकर्मियों को राहत देकर दबाव मुक्त करने के लिये रोस्टर बनाकर दस दिन की ड्यूटी के बाद एक दिन का अवकाश देने की व्यवस्था लागू की थी। जो करीब चार महीने में ही समाप्त हो गई।

शहर में पीआरवी में तैनात एक सिपाही ने बताया वो मुरादाबाद का है और पिछले चार महीने से अपने बच्चे और पत्नी को नहीं देख पाया है क्योंकि नौकरी ही इतनी मुश्किल हो गयी है। पेट्रोङ्क्षलग हो या सामान्य ड्यूटी दारोगा और या सिपाहियों को 12-16 घंटे की ड्यूटी करनी ही होती है। पुलिस रिस्पांस व्हीकल (पीआरवी) की ड्यूटी तो और भी ज्यादा कठिन है उन्होंने रिस्पांस टाइम के अंदर ही घटनास्थल पर पहुंचकर मामले का निस्तारण कराकर रिपोर्ट भी देनी होती है। हालांकि होमगार्ड और पीआरडी जवानों की ड्यूटी का समय केवल 8-8 घंटे का ही होता है। वह जिस दिन छुट्टी लेते है उन्हें उस दिन का मानदेय नहीं मिलता है। कभी-कभी साथी के समय पर न आने की वजह से सिपाही को 14 -18 घंटे से ज्यादा समय तक भी नौकरी करनी पड़ती है

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