स्टेट डेस्क: बिहार में जातीय जनगणना कराने को लेकर जारी विवाद के बीच जेडीयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ी बात कही है. उन्होंने सावित्री फुले की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि कई समाचार पत्रों से ऐसी खबर मिल रही है कि देश में साल 2022 संभावित जनगणना को टालने की बात चल रही है. केंद्र का यह मानना है कि कोरोना वैक्सीनेशन के आंकड़े से लोगों की संख्या का पता चल जाएगा. ऐसे में जनगणना को साल 2031 तक टाल दिया जाए. कोरोना को लेकर ऐसे फैसले की बात कही जा रही है. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो ये सही नहीं होगा.
कुशवाहा ने कहा कि वैक्सीनेशन के आंकड़े से लोगों की संख्या का पता तो चल जाएगा, लेकिन वो किस जाति के हैं और किस स्थिति में हैं इसका पता नहीं चल पाएगा. वहीं, जब तक जाति के आधार पर जनगणना नहीं होती है, तब तक उस वर्ग के सुधार के लिए सही ढंग से काम कर पाना संभव नहीं है. इस दौरान उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि आम जनगणना को टालने के पीछे जातीय जनगणना को टालने की कोशिश है. बिहार में भी अन्य दल खुल कर इस मोर्चे पर सामने नहीं आ रहे हैं. लेकिन अंदर ही अंदर सभी चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू शुरू से ही जातीय जनगणना की मांग उठाता रहा है और आगे भी उठाता रहेगा. जातीय जनगणना को रोकने की हर कोशिश का पार्टी विरोध करेगी. ये आवश्यक है और ये होकर रहेगा. बता दें कि प्रदेश में इस मुद्दे पर लंबे समय से विवाद जारी है. केंद्र द्वारा मांग खारिज किए जाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने ये एलान कर दिया है कि बिहार सरकार राज्य में अपने खर्च से जातीय जनगणना कराएगी. इस संबंध में बातचीत के लिए ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई जाएगी.
ऑल पार्टी मीटिंग बुलाए जाने के संबंध में राज्य की सभी पार्टियों ने सहमति भी दे दी है. लेकिन एनडीए घटक दल बीजेपी ने मामले को फंसा कर रखा है. इस बात को खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वीकार किया है. सोमवार को जनता दरबार के बात पत्रकारों से मुखातिब हुए मुख्यमंत्री से जब पत्रकारों ने जातीय जनगणना के संबंध में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि इसको लेकर सर्वदलीय बैठक होनी है. सबकी सहमति आ जाएगी ,उसके बाद निर्णय किया जाएगा. हमें नहीं लगता है कि कोई असहमति की बात आएगी.