स्टेट डेस्क: जीतन राम मांझी आज कल शराब के मामले में महाभारत की प्रसिद्ध पंक्ति ‘अश्वथामा हत:, नरोवा कुंजरोवा’ की तर्ज पर अपनी पैनी जुबान को धार देने में लगे हैं। न तो वह शराब के पक्ष में हैं और न ही इसके विरोध में। वह गरीबों का हवाला देते हुए कहते चल रहे हैं कि ‘बड़ी बुरी है शराब पर मेडिकल साइंस कहता है कि थोड़ी थोड़ी पिया करो। वह भी रात के दस बजे के बाद।’ ऐसा ही कुछ पूर्व मुख्यमंत्री ने गया के डुमरिया में अपने भाषण में सोमवार को कहा है।
उन्होंने शराब के मसले में पब्लिक के पाले में गेंद फेंक दी है। साथ ही सरकार को भी सोचने को विवश कर दिया है। यही नहीं, उन्होंने बड़ी ही चालाकी से शराब कितनी बुरी है इस बात को अपने घर से जोड़ कर लोगों को समझाया। लेकिन दूसरे पल ही उन्होंने यह भी कह दिया कि यदि देर रात अपने घर में थोड़ी-थोड़ी दवा के रूप में ले रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है और न ही यह गलत है। यही बात हम राज्य सरकार कह रहे हैं।
उन्होंने अपने घर के वाकये का हवाले देते हुए कहा कि जब मैं नौ साल का था, तो घर में बाबूजी और मां दोनों ही देसी शराब बनाते थे। यही नहीं दोनों पीते भी थे। एक दिन शराब को लेकर दोनों के बीच झगड़ा हो गया। बाबूजी ने मां की पिटाई कर दी। हमें बहुत बुरा लगा तो हमने बाबूजी के सामने विरोध जताया। कहा कि यह तो गलत बात है। आपने मां को क्यों मारा।
आप लोग शराब पीएंगे तो हम स्कूल नहीं जाएंगे और न ही पढ़ाई करेंगे। यह कह कर हम अपनी जिद्द पर अड़ गए तो मां-बाबूजी दोनों ने शराब छोड़ दी। हम और हमारा छोटा भाई दोनों पढ़ने लगे। छोटा भाई पुलिस इंस्पेक्टर हो गया और हम आज इस मुकाम पर पहुंच गए।
उन्होंने कहा कि आज शराब के मामले में सबसे अधिक गरीब लोग जेल में बंद हैं। यह गलत है। एक पउवा शराब के लिए गरीब का शोषण किया जा रहा है, जबकि बड़ी संख्या में अधिकारी, नेता महंगी शराब का सेवन आज भी कर रहे हैं। लेकिन वह जेल में नहीं है। इस पर सरकार को सोचना ही होगा।