वृंदावन आश्रय स्थलों में रहने वाली माताओं-बहनों को देख दुखी हो गए महामहिम रामनाथ कोविंद

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वृंदावन, रजनी त्रिपाठी। महामहिम रामनाथ कोविंद उस सामाजिक अभिशाप से बहुत दुखी हैं जिसमें तमाम महिलाओं को उनके परिजन वृंदावन ले जाकर छोड़ आते हैं। और तो और कभी भी उनकी सुध लेने भी नहीं पहुंचते हैं। कृष्णा कुटीर में कुछ ऐसी ही बेसहारा महिलाओं से मिलकर महामहिम दुखी हो गए। उन्होंने इसे एक सामाजिक कलंक करार देते हुए जल्द से जल्द इस प्रथा को खत्म करने की बात कही है।

उन्होंने विगत दिवस इस समस्या को लेकर दो ट्वीट भी किए। जिसमें पहला ट्वीट में उन्होंने कहा कि “ऐसे अनेक उदाहरण देखने में आए हैं, जब महिलाओं के अपने बेटे या परिवार वाले ही, उन्हें वृंदावन में बेसहारा छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने नहीं आए। यह सामाजिक बुराई, देश की संस्कृति पर एक कलंक है। यह कलंक जितनी जल्दी मिट सके, उतना ही अच्छा होगा।” उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं को पुनः मुख्यधारा में लाए जाने की जरूरत है।

वहीं दूसरे ट्वीट में राष्ट्रपति ने लिखा कि “मेरा विचार है कि समाज में ‘कृष्णा कुटीर’ प्रकार के आश्रय-गृहों के निर्माण की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए। प्रयास तो यह होना चाहिए कि निराश्रित महिलाओं के पुनर्विवाह, आर्थिक स्वावलंबन, पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सेदारी, सामाजिक और नैतिक अधिकारों की रक्षा जैसे उपाय किए जाएं।”