Indian Economy : RBI-रेटिंग एजेंसियों ने घटाया GDP अनुमान, टैक्स कलेक्शन बढ़ा पर चुनौतियां कम नहीं!

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Central Desk : वित्त वर्ष 2022-23 में टैक्स कलेक्शन में शानदार उछाल देखने को मिला है. बात चाहे डायरेक्ट टैक्स की हो या फिर इनडॉयरेक्ट टैक्स दोनों ही के कलेक्शन में तेजी देखने को मिला है. कॉरपोरेट सेक्टर की कमाई बढ़ी है तो वे ज्यादा टैक्स का भुगतान कर रहे हैं तो जीएसटी कलेक्शन भी बढ़ा है. वहीं पर्सनल इनकम टैक्स में भी जबरदस्त ग्रोथ है. रविवार 9 अक्टूबर को वित्त मंत्रालय ने डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन के आकड़ें जारी किए जिसके मुताबिक डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में 24 फीसदी का उछाल आया है और 1 अप्रैल 2022 से 8 अक्टूबर तक ये 8.98 लाख करोड़ रुपये रहा है. जिसमें कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन में 16.74 फीसदी तो पर्सनल इनकम टैक्स कलेक्शन 32.30 फीसदी बढ़ा है. रिफंड्स को छोड़ दें तो डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 7.45 लाख करोड़ रुपये रहा है. जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 16.3 फीसदी ज्यादा है. सितंबर, 2022 में जीएसटी कलेक्शन 1,47,686 करोड़ रुपये रहा है. बीते छह महीने से लगातार जीएसटी कलेक्शन 1.4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा है.

किसी भी देश के टैक्स कलेक्शन के आंकड़ें उस देश के आर्थिक गतिविधि के इंडीकेटर का काम करता है. पर भारत में औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार धीमे पड़ती जा रही है. आईआईपी दर में गिरावट आती जा रही है. जुलाई में आईआईपी 2.4 फीसदी रहा है. एक्सपोर्ट्स में भी गिरावट देखी जा रही है. व्यापार घाटा पहले छह महीने में दोगुना हो चुका है. कोर सेक्टर 9 महीने के निचले लेवल स्तर 9.9 फीसदी रहा है, बावजूद इसके टैक्स कलेक्शन में तेजी रही है.

30 सितंबर, 2022 को आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है. वर्ल्ड बैंक समेत कई रेटिंग एजेंसियों ने भी विकास दर के अनुमान को घटा दिया है. एक तरफ सेंट्रल बैंक समेत रेटिंग एजेंसियां मौजूदा वित्त वर्ष के अलावा अगले वित्त वर्ष के लिए विकास दर के अनुमान को घटा रही हैं लेकिन टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है.

रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद कमोडिटी के दाम आसमान छू रहे हैं. कच्चे तेल से लेकर प्राकृतिक गैस और खाने के तेल के दाम बढ़े हैं. तो लौह अयस्क और दूसरी कमोडिटी के दामों में उछाल से कॉरपोरेट जगत परेशान है. क्योंकि बढ़ी लागत का भार कस्टमर्स पर डालना पड़ रहा है. जिसका असर सेल्स पर पड़ रहा है. दूसरी तरफ डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है. इन सब वजहों से महंगाई पर दवाब है. कर्ज के महंगा होने से लोगों की बचत घट रही है. क्योंकि ईएमआई महंगी हो रही है.

इन सब परेशानियों के बावजूद टैक्स कलेक्शन बढ़ा है. माना जा रहा है कि कॉरपोरेट्स की कमाई बढ़ने के चलते उनकी टैक्स की देनदारी बढ़ी है तो AIS (Annual Information System) के चलते पर्सनल इनकम टैक्स कलेक्शन बढ़ा है. टैक्सपेयर्स के सलाना वित्तीय लेनदेन पर कड़ी नजर रखे जाने के चलते टैक्स कलेक्शन बढ़ा है. पर विकास की रफ्तार की गति ऐसी ही धीमी पड़ती रही तो टैक्स कलेक्शन में तेजी पर भी ब्रेक लग सकता है जो सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है.