कानपुर मानसून : मेघा छाए, थोड़ा बरसे थोड़ा इतराए और चले गए और छोड़ गए इंतजार

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कानपुर, बीपी प्रतिनिधि। भले कुमार विश्वास गुनगुनाते रहें कि-
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता हैं।
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।।
मगर इस बार बादल तो जैसे कानपुर की धरती से रूठ ही गया है। और निदा फाजली के शे’र पर जाकर टिक गया कि-
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जान,
किस राह से मुड़ना है, किस छत को भिगोना है।

बड़े लंबे इंतजार के बाद मंगलवार को कानपुर पर भी बारिश की कुछ छींटे गिर ही गईं। मेघा 15 मिनट की फुहार के बाद एकदम से रूठकर गायब हो गए। हालांकि कुछ लोग इस चिढ़ाने वाले बारिश भी करार दे रहे हैं। हां, इतना तो तय है कि पहली बारिश से उठी माटी की सौंधी खुशबू से शहरियों को कुछ राहत तो मिल ही गई।

इस बार मानसून अपने तय समय से काफी पीछे चल रहा है। खास तौर पर उत्तर भारत में। एक ओर असम में बाढ़ के हालात बेकाबू हैं। गुवाहाटी स्टेशन में पटरियां मिट्टी की कटान की वजह से हवा में लटक रही हैं। बिहार में तो अतिवृष्टि की वजह से 11 लोगों को जान ही गंवाई पड़ गई। दूसरी तरफ शहर के लोग गर्मी के सितम को इस साल मार्च के मध्य से ही झेल रहे हैं।

मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो इस साल गर्मी ने पिछले कई दशकों का रिकार्ड ध्वस्त कर दिया है। पहले पारा 45 के ऊपर जाता था तो दस-15 दिन के लिए। फिर तेज आंधी और स्थानीय बादलों की वर्षा से पारा फिर नरम पड़ जाता था। इस सीजन में एक बार भी न आंधी आई, न स्थानीय बादल ही बरसे। शहर के कई इलाकों में पारा 49-50 के आसपास भी कई-कई दिनों तक टिका रहा।
कुछ लोग तो कहने लगे कि ‘अबकि अषाढ़ी के पहिले पानी न गिरी’। खैर बादलों का मूड बदला और मंगलवार को शहर को मानसून की पहली बारिश तो न सही पर पहली फुहार जरूर मिल गई।