Pulin Tripathi/Vijay Jayswal : आज देश और विदेश में ‘इंटरनेशनल मेन्स डे’ मनाया जा रहा है। आपको आश्चर्य हो रहा है। आपको लग रहा होगा कि पुरुष प्रधान समाज में इस दिन की जरूर है ही क्या तो बता दें की भले ही समाज को पितृसत्तात्मक (patriarchal) बताया जाता है। पर हकीकत में कई बार पुरुष भी हिंसा का शिकार होते हैं। उनके साथ भी लैंगिक भेदभाव होता है। और तो और शोषण भी होता है। जिसके बारे में वह खुलकर किसी को बता भी नहीं पाते।
1999 से इस दिन की शुरुआत हो चुकी है। जैसे हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। वैसे ही समानता के लिए इस दिन को मनाने की परंपरा डाली गई है। आइए बताते हैं क्यों मनाया जाता है यह दिन। 19 नवंबर को यह दिन मनाने का उद्देश्य पुरुषों के संग होने वाले शोषण, भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना है। साथ ही पुरुषों को उनके अधिकार दिलाना भी इसका मकसद है। इसके अलावा यह दिन लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देता है। हर साल इस दिन की एक अलग थीम भी होती है। जैसे पिछले साल ‘पुरुषों और महिलाओं के बीच बेहतर संबंध’ इसका थीम थी। इस साल की थीम ‘पुरुषों और लड़कों की मदद करना’ है। इसका उद्देश्य विश्व स्तर पर पुरुषों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार करना है।
यहां यह भी साफ करना होगा कि सबसे पहले साल 1999 में आज के ही दिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया था। उस साल वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. जेरोम तिलक सिंह ने अपने पिता का जन्मदिन मनाया था। इसी दिन उन्होंने सबके सामने पुरुषों की आवाज उठाने और उनके सकारात्मक पहलु सामने लाने के लिए प्रेरित भी किया था। इसके बाद से दुनियाभर में हर साल इस दिन को ‘इंटरनेशनल मेन्स डे’ के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत में ‘इंटरनेशनल मेन्स डे’ पहली बार 19 नवंबर 2007 को मनाया गया था। वहीं, अगर इस दिवस के महत्व की बात करें तो मेन्स डे को मनाने का मुख्य उद्देश्य पुरुषों के संघर्ष, भलाई और स्वास्थ्य जैसे मामलों के साथ उनके साथ होने वाले भेदभाव, शोषण और हिंसा को सबके सामने लाना है। यह दिन समाज में पुरुषों के साथ होने वाले भेदभाव को समर्पित किया गया है। इस दिन लोगों को महिला और पुरुषों दोनों की अहमियत बताई जाती है। साथ ही लोगों को उनके साथ होने वाले भेदभाव के प्रति जागरूक किया जाता है।