पुलिन त्रिपाठी। हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन मुख्य रूप से उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से होता है। हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों में भी अब इसके प्रतिरूप निकलने लगे हैं। इस यात्रा में भक्तों का तांता लग जाता है। रथ यात्रा का आरंभ पहली जुलाई और समापन 12 जुलाई को होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं।
ओडिशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर से तीन सजेधजे रथ रवाना होते हैं। इनमें सबसे आगे बलराज जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ प्रभु का रथ होता है।
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी। तब जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और सात दिन ठहरे। तभी से यहां पर रथयात्रा निकालने की परंपरा है।
खास बातें
16 पहियों से बने भगवान श्री जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट, जबकि श्री बलराम जी के रथ की ऊंचाई 45 फीट तथा सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई 44.6 फीट होती है।
चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी के प्रति लोगों की असीम आस्था है। इसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र एवं श्रीक्षेत्र जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह भगवान कृष्ण के ही एक रूप श्री जगन्नाथ की लीला-भूमि है। यहां प्रत्येक वर्ष श्री जगन्नाथ रथयात्रा को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रथयात्रा का शुभारम्भ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है। इस साल रथयात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी, जिसका समापन 12 जुलाई को होगा।
इस दिन लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जी के रथों को मोटे-मोटे रस्सों से बांधकर खींचते हुए उनके मौसी के घर ‘गुंडीचा मंदिर’ ले जाते हैं, जो जगन्नाथ मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस अवसर पर रथों को खींचना भक्त अपना सौभाग्य मानते हैं। भगवान श्री जगन्नाथ, श्री बलराम एवं बहन सुभद्रा के लिए यात्रा में प्रयुक्त होने वाले तीन भिन्न रथों का निर्माण पंच तत्वों यानी लकड़ी, धातु, रंग, वस्त्र एवं सजावटी सामग्री से किया जाता है। विभिन्न प्रकार के औषधीय गुणों से परिपूर्ण नीम की लकड़ी का उपयोग रथ निर्माण में होता है।
श्री बलराम जी का ‘तालध्वज’ नामक लाल तथा हरे रंग का रथ यात्रा में सबसे आगे होता है। बीच में लाडली बहन सुभद्रा का ‘दर्पदलन’ नामक काले एवं नीले रंग का, जबकि जगत के पालनहार भगवान श्री जगन्नाथ का ‘गरुड़ध्वज’ नामक रथ सबसे पीछे चलता है। इस पर श्री हनुमान जी और श्री नृसिंह भगवान के प्रतीक चिह्न अंकित रहते हैं। इसका रंग लाल व पीला होता है। 16 पहियों से बने भगवान श्री जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट, जबकि श्री बलराम जी के रथ की ऊंचाई 45 फीट तथा सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई 44.6 फीट होती है। रथ के निर्माण में किसी प्रकार की कील या अन्य नुकीली अथवा कांटेदार वस्तु का प्रयोग नहीं होता। रथ के लिए लकड़ी संग्रह करने का कार्य वसंत पंचमी को, जबकि रथ निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया को आरम्भ होता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में भगवान जगन्नाथ, बलराम जी तथा सुभद्रा जी की मूर्तियों का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी कर रहे थे। मूर्ति निर्माण के दौरान विश्वकर्मा जी ने तत्कालीन राजा से शर्त रखी थी कि तीनों विग्रहों का निर्माण कार्य संपन्न होने तक कोई उनके कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा। अभिमान में चूर राजा ने इस शर्त की अवहेलना कर दी और उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया।
उसके बाद विश्वकर्मा जी ने मूर्तियों का निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया। यही कारण है कि आज भी भगवान जगन्नाथ, श्रीबलराम जी तथा सुभद्रा जी की मूर्तियां अधूरी ही बनाई जाती हैं और भक्त बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा से इन विग्रहों की पूजा-अर्चना करते हैं।